मिड डे मील की लागत पेयजल की एक बोतल से भी कम होने से नाराज संसदीय समिति ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। समिति ने चेतावनी दी है कि अगर भोजन पर प्रति यूनिट खर्च को बढ़ाया नहीं गया तो बिहार में मिड डे मील खाने से छात्रों की मौत जैसी घटना भविष्य में फिर हो सकती है।
समिति का कहना है कि आजकल पानी की कीमत भी 10 रुपये से कम में नहीं मिलती है। ऐसे में भोजन की प्रति यूनिट लागत महज 3 रुपये 11 पैसे काफी कम है। इसलिए सरकार को मिड डे मील पर खर्च वास्तविक आधार पर तय करना चाहिए।
महिलाओं के सशक्तिकरण संबंधी संसदीय समिति ने कहा है कि सरकार मिड डे मील की प्रति यूनिट लागत, कैलोरी और खाना तैयार करने के तरीके की समय-समय पर समीक्षा करे।योजना का परिचालन ठीक से हो रहा है या नहीं, इसे सुनिश्चित करने के लिए नियमित रुप से क्रियान्वयन समीक्षा होनी चाहिए। समिति ने कहा कि बेशक मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस योजना की निगरानी के लिए ब्लॉक, जिला, राज्य और केंद्रीय स्तर पर समितियां गठित की है लेकिन निगरानी समितियां अपने कार्य को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। संसदीय समिति का कहना है कि अगर ऐसा किया गया होता तो बिहार की घटना नहीं घटती। सरकार को निगरानी समिति के लिए कुछ जवाबदेही तय करनी चाहिए, ताकि वे अपने काम को गंभीरता से ले सकें।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल मिड डे मील योजना के जरिए देश में 12 लाख 12 हजार विद्यालयों के 10 करोड़ 44 लाख बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं। प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के मिड डे मील पर 3 रुपये 11 पैसा और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 4 रुपये 65 पैसा खर्च किया जाता है। पिछले वित्त वर्ष में इस योजना पर 9901 करोड़ की राशि खर्च की गई थी। जबकि चालू वित्त वर्ष में 13215 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं।
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