जागरण संवाद केंद्र, फतेहाबाद
शिक्षा विभाग की खामियों को दबाने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी ने अजीबो गरीब आदेश जारी किया है। ऐसा आदेश दिया है जो नागरिक अधिकारों के खिलाफ तुगलकी फरमान है। उन्होंने सभी स्कूल मुखियाओं को पत्र जारी कर कहा है कि वे प्रेस में किसी तरह का बयान नहीं दे सकते। यदि मीडिया में कोई खबर आती है तो बयान देने के लिए बीईओ, डीईओ, मौलिक शिक्षा अधिकारी या जिला परियोजना अधिकारी ही अधिकृत होगा। किसी शिक्षक को मीडिया के सामने अपनी बात रखने का अधिकार नहीं होगा। यह पत्र जारी होने के बाद शिक्षकों में रोष फैल गया है। शिक्षक नेताओं का कहना है कि यह आदेश नागरिक अधिकारों के खिलाफ है। नागरिक अधिकारों में अभिव्यक्ति का अधिकार अहम है, जिसे छीना नहीं जा सकता। इसलिए शिक्षकों ने विभाग के खिलाफ आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया है। शिक्षकों को का कहना है कि स्कूलों में आए दिन जन सरोकार से जुड़े कार्यक्रम होते हैं, जिनका प्रचार प्रसार मीडिया के जरिए होता है। मीडिया से दूरी बनाने से तमाम विभागीय कार्यक्रमों व नीतियों के बारे में आमजन को पता ही नहीं चल पाएगा। इस पत्र के संबंध में डीईओ व डिप्टी डीईओ से बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने फोन अटेंड नहीं किया। डीसी से भी बात करनी चाही, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
पत्र पर उठे सवाल
शिक्षकों ने डीईओ के पत्र पर भी सवाल उठाए हैं। पत्र में महज आदेश दिया हुआ है। मगर ऐसा कहीं नहीं लिखा कि यह पत्र किस अधिनियम, अध्यादेश या विभागीय पॉलिसी के तहत दिया गया है। जबकि कायदे से किसी आधार के बगैर कोई पत्र जारी नहीं किया जा सकता। पत्र में यह भी हवाला नहीं दिया गया कि यह आदेश निदेशालय से जारी हुआ है या सरकार से। फिलहाल तो स्पष्ट रूप से डीईओ ने अपने स्तर पर आदेश जारी किया है।
अधिकारों को हनन: भारती
हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के प्रदेश महासचिव सीएन भारती का कहना है कि सरकार उनके मूल अधिकारों का हनन कर रही है। इससे पूर्व भी सरकार ने एक और पत्र जारी किया हुआ है। उसमें लिखा है कि शिक्षक किसी पत्रिका में कविता भी नहीं छपा सकते। यह अंग्रेजी नीति जैसा आदेश है। इसके लिए सरकार के खिलाफ उन्होंने आंदोलन भी शुरू किया हुआ है।www.teacherharyana.blogspot.com (Recruitment , vacancy , job , news)
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