स्वाद से पहले आधार111मिड डे मील वर्करों को खाना बनाने और परोसने की बारीकियां सिखाने के निर्णय से एक बात तो स्पष्ट है कि दोपहर भोजन योजना के बेतरतीब क्रियान्वयन की चौतरफा आलोचना और ढेरों विसंगतियां सामने आने के बाद सरकार जैसे चौंक कर जागी है। राजकीय स्कूलों में अब दोपहर का भोजन अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक बनाने के लिए वर्करों को सरकार स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट की ओर से विशेष प्रशिक्षण दिलवाएगी। दस दिन प्रशिक्षण पाने वालों को बाकायदा
सर्टिफिकेट भी दिए जाएंगे। अब जरा व्यावहारिक पक्षों, पहलुओं पर भी गौर कर लिया जाए। सरकार को स्वाद का तड़का लगाने की योजना बनाने से पहले मिड डे मील की सुरक्षा के बंदोबस्त करने चाहिए। आधार समतल और नींव मजबूत होने पर ही भवन निर्माण की तैयारी की जाए अन्यथा योजना का स्वरूप हास्यास्पद लगने लगता है। आधार तंत्र यदि अस्वास्थ्यवर्धक है तो फिर स्वादिष्ट व पौष्टिक भोजन की आशा कैसे की जा सकती है? राजकीय स्कूलों में भोजन ऐसा बने जिसे खाकर बच्चों के बीमार पड़ने की आशंका न रहे। सामग्री प्रदूषित हो तो चांदी का वर्क लगाने से उसमें गुणवत्ता नहीं आ जाती। सरकारी मानक है कि भोजन तैयार करने के लिए 50 बच्चों पर एक वर्कर लगाया जाए। जानकारी में तो यह आ रहा है कि आधे से अधिक स्कूलों में नियमित वर्कर ही नहीं। पचास फीसद स्कूलों में अनाज रखने का स्थान नियत नहीं, बहुत कम स्कूलों में मीनू के अनुसार भोजन बनता है। 1 ईंधन के रूप में रसोई गैस के स्थान पर लकड़ी का बहुतायत से इस्तेमाल हो रहा है। भंडारण की स्थायी व साफ सुथरी जगह न होने के कारण सीलन से अनाज में कीड़े लग रहे हैं और अक्सर दोयम दर्जे के अनाज की आपूर्ति की जाती है जिसे साफ करने का कोई साधन भी नहीं। भोजन परोसने के लिए हवादार व साफ सुथरा स्थान नहीं मिलता। विडंबना देखिए कि योजना शुरू होने के 18 वर्ष बाद तक मिड डे मील के लिए रसोई तैयार नहीं हो पाई। खुले में भोजन बनता है जिसमें मिट्टी व कीड़े मकोड़े पड़ने से वह स्वास्थ्यकर तो नहीं रह जाता। सरकार को अब तनिक सुध आई है कि भोजन पक्के शेड या टेंट में बनाया जाए, इसके लिए बजट का प्रावधान भी किया है। सबसे अहम दायित्व के तहत पहले मिड डे मील का आधार तंत्र सुदृढ़ बनाया जाए। संबंधित विभाग का विजन साफ तौर पर भटकाव का शिकार नजर आ रहा है।
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सर्टिफिकेट भी दिए जाएंगे। अब जरा व्यावहारिक पक्षों, पहलुओं पर भी गौर कर लिया जाए। सरकार को स्वाद का तड़का लगाने की योजना बनाने से पहले मिड डे मील की सुरक्षा के बंदोबस्त करने चाहिए। आधार समतल और नींव मजबूत होने पर ही भवन निर्माण की तैयारी की जाए अन्यथा योजना का स्वरूप हास्यास्पद लगने लगता है। आधार तंत्र यदि अस्वास्थ्यवर्धक है तो फिर स्वादिष्ट व पौष्टिक भोजन की आशा कैसे की जा सकती है? राजकीय स्कूलों में भोजन ऐसा बने जिसे खाकर बच्चों के बीमार पड़ने की आशंका न रहे। सामग्री प्रदूषित हो तो चांदी का वर्क लगाने से उसमें गुणवत्ता नहीं आ जाती। सरकारी मानक है कि भोजन तैयार करने के लिए 50 बच्चों पर एक वर्कर लगाया जाए। जानकारी में तो यह आ रहा है कि आधे से अधिक स्कूलों में नियमित वर्कर ही नहीं। पचास फीसद स्कूलों में अनाज रखने का स्थान नियत नहीं, बहुत कम स्कूलों में मीनू के अनुसार भोजन बनता है। 1 ईंधन के रूप में रसोई गैस के स्थान पर लकड़ी का बहुतायत से इस्तेमाल हो रहा है। भंडारण की स्थायी व साफ सुथरी जगह न होने के कारण सीलन से अनाज में कीड़े लग रहे हैं और अक्सर दोयम दर्जे के अनाज की आपूर्ति की जाती है जिसे साफ करने का कोई साधन भी नहीं। भोजन परोसने के लिए हवादार व साफ सुथरा स्थान नहीं मिलता। विडंबना देखिए कि योजना शुरू होने के 18 वर्ष बाद तक मिड डे मील के लिए रसोई तैयार नहीं हो पाई। खुले में भोजन बनता है जिसमें मिट्टी व कीड़े मकोड़े पड़ने से वह स्वास्थ्यकर तो नहीं रह जाता। सरकार को अब तनिक सुध आई है कि भोजन पक्के शेड या टेंट में बनाया जाए, इसके लिए बजट का प्रावधान भी किया है। सबसे अहम दायित्व के तहत पहले मिड डे मील का आधार तंत्र सुदृढ़ बनाया जाए। संबंधित विभाग का विजन साफ तौर पर भटकाव का शिकार नजर आ रहा है।
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