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हरियाणा के 2800 से अधिक जेबीटी शिक्षकों की छुट्टी
करीब 13 साल पहले 3206 जेबीटी शिक्षकों की भर्ती मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आज 2800 से अधिक अभ्यर्थियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। तत्कालीन ओम प्रकाश चौटाला नीत हरियाणा सरकार के समय हुई इस भर्ती मामले में कोर्ट ने कहा कि प्रकाशित चयनित अभ्यर्थियों की सूची असली नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सूची में सभी सफल अभ्यर्थियों का नाम नहीं है।
जस्टिस के कान्नन ने कहा कि यह चयन दोषपूर्ण था। हालांकि उन्होंने पूरी चयनित सूची को दोषपूर्ण नहीं बताया। इसके साथ ही उन्होंने 13 साल बाद अभ्यर्थियों के चयन पर किसी तरह की बहस को नकार दिया। जस्टिस कान्नन ने सरकार को निर्देश दिया कि वह एक मेरिट लिस्ट बनाये और यह स्पष्टï करे कि हटाने के लिए कारण बताओ नोटिस की उसे जरूरत नहीं जैसा कि चयनित अभ्यर्थी इस याचिका में पक्षकार हैं और हाईकोर्ट का आदेश उनकी सुनवाई के बाद ही आना था। जस्टिस कान्नन ने व्यवस्था दी कि जो लोग चयन के योग्य हैं और जिन्हें नौकरी लगातार करने का अधिकार है उनका नाम एक बार में दो सूचियों में होना जरूरी है। एक तो प्रकाशित सूची और दूसरी आरोपी आईएएस अधिकारी संजीव कुमार द्वारा सुप्रीमकोर्ट में पेश सूची।
जस्टिस कान्नन ने इस बात का संज्ञान लिया कि सरकार के जवाब में 123 अभ्यर्थियों का नाम दोनों सूचियों में है। कोर्ट ने कहा कि जिन अभ्यर्थियों के अंक कम (साक्षात्कार में) कर दिये गए और जिनका नाम अब भी सूची में हैं उन सभी को चयनित माना जाएगा।
चौटाला सहित कई लोग हैं जेल में
इसी मामले में दिल्ली की सीबीआई अदालत ने चौटाला व अजय समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे । 16 जनवरी, 2013 को सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायाधीश विनोद कुमार ने सभी आरोपियों को दोषी ठहराया।
13 साल पहले का है मामला
असल में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया का नोटिफिकेशन नवंबर 1999 में हुआ। इसके तहत 3206 अभ्यर्थियों की प्राथमिक शिक्षकों के तौर पर विभिन्न जिलों में भर्ती होनी थी। अक्टूबर 2000 में 7707 परिणाम घोषित किए जाने के बाद साक्षात्कार के लिए बुलाए गए। इसी बीच इस चयन को असफल रहे अभ्यर्थियों ने चुनौती दी और उस समय प्राथमिक शिक्षा के निदेशक का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे संजीव कुमार के खिलाफ केस दर्ज किया गया। इस केस में तब एक रोचक मोड़ आ गया जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी कि उन पर मुख्यमंत्री की ओर से दबाव डाला गया था कि दूसरी सूची बनाई जाए। बाद में उन्होंने दबाव की बात को नकारते हुए कहा कि उनके खिलाफ गलत मामला दर्ज किया गया।
महत्वपूर्ण तथ्य
कोर्ट ने कहा कि जिनकी नियुक्ति हो चुकी थी लेकिन ताजा सूची में उनका नाम नहीं है उन्हें बर्खास्तगी का सामना करना होगा। जो वेतन उन्हें दिया जा चुका है उसकी कोई रिकवरी नहीं होगी। भविष्य में किसी तरह की नियुक्ति के लिए भी उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकेगा। ताजा आदेश के बाद नौकरी से जाने वालों के लिए सरकार को उनकी उम्र के संबंध में ताजा नीति बनानी चाहिए।
सुप्रीमकोर्ट जाएंगे शिक्षक
फैसले के खिलाफ जेबीटी शिक्षकों ने हाईकोर्ट की डबल बैंच और सुप्रीम कोर्ट तक जाने का फैसला लिया है।
कानूनी सलाह लेगी सरकार
हरियाणा की शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने कहा कि जेबीटी भर्ती रद्द करने वाले फैसले की कॉपी अभी तक नहीं मिली है। फैसले की कॉपी मिलने के बाद ही सरकार इस पर कोई फैसला लेगी। इस मामले में कानूनी सलाह ली जाएगी।
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52 जेबीटी की छिनी नौकरी
वरिष्ठ संवाददाता, पानीपत : जेबीटी की नौकरी पाने से वंचित कुछ अभ्यार्थियों ने कोर्ट में केस कर दिया। केस की परत दर परत जब खुलने लगी तो जेबीटी भर्ती में हुए घोटाले का राज खुला। कोर्ट के फैसले के बाद नौकरी अब खतरे में है। सरकार से नौकरी बचाने की आस जेबीटी अब भी मन में संजोए हैं। 1जेबीटी टीचर के पद पर भर्ती के लिए वर्ष 2000 में आवेदन मांगे गए थे। पानीपत जिले के सरकारी स्कूलों में 92 रिक्तियां थी। रिक्तियों के आधार पर जिलास्तर पर साक्षात्कार आयोजित किया गया। लेकिन भर्ती की सूची प्रदेशस्तर पर जारी की गई थी। एक सूची शिक्षा विभाग के निदेशक संजीव कुमार व दूसरी सूची तत्कालीन चौटाला सरकार ने लगा दी। पानीपत के 40-42 अभ्यार्थी नौकरी पाने से रह गए। जेबीटी की नौकरी पाने से वंचित 8-10 अभ्यार्थियों ने मिलकर कोर्ट में केस कर दिया। जब केस का खुलासा हुआ तो 2002 में भर्ती घोटाले का उजागर हुआ। कोर्ट के फैसले के बाद जेबीटी शिक्षकों पर नौकरी की तलवार लटकेगी। जेबीटी को सात आठ माह पहले पेटिशनर बनने के लिए बाध्य किया गया। वर्ष 2000 में भर्ती हुए जेबीटी शिक्षकों को घोटाले की तनिक भी भनक नहीं लगी। शिक्षकों को इस तरह की आशंका होती तो पहले की सतर्कता बरतते। शिक्षा विभाग से आदेश जारी होने के बाद ही उनकी नौकरी समाप्त मानी जाएगी। गेंद अब सरकार के पाले में है।
वरिष्ठ संवाददाता, पानीपत : जेबीटी की नौकरी पाने से वंचित कुछ अभ्यार्थियों ने कोर्ट में केस कर दिया। केस की परत दर परत जब खुलने लगी तो जेबीटी भर्ती में हुए घोटाले का राज खुला। कोर्ट के फैसले के बाद नौकरी अब खतरे में है। सरकार से नौकरी बचाने की आस जेबीटी अब भी मन में संजोए हैं। 1जेबीटी टीचर के पद पर भर्ती के लिए वर्ष 2000 में आवेदन मांगे गए थे। पानीपत जिले के सरकारी स्कूलों में 92 रिक्तियां थी। रिक्तियों के आधार पर जिलास्तर पर साक्षात्कार आयोजित किया गया। लेकिन भर्ती की सूची प्रदेशस्तर पर जारी की गई थी। एक सूची शिक्षा विभाग के निदेशक संजीव कुमार व दूसरी सूची तत्कालीन चौटाला सरकार ने लगा दी। पानीपत के 40-42 अभ्यार्थी नौकरी पाने से रह गए। जेबीटी की नौकरी पाने से वंचित 8-10 अभ्यार्थियों ने मिलकर कोर्ट में केस कर दिया। जब केस का खुलासा हुआ तो 2002 में भर्ती घोटाले का उजागर हुआ। कोर्ट के फैसले के बाद जेबीटी शिक्षकों पर नौकरी की तलवार लटकेगी। जेबीटी को सात आठ माह पहले पेटिशनर बनने के लिए बाध्य किया गया। वर्ष 2000 में भर्ती हुए जेबीटी शिक्षकों को घोटाले की तनिक भी भनक नहीं लगी। शिक्षकों को इस तरह की आशंका होती तो पहले की सतर्कता बरतते। शिक्षा विभाग से आदेश जारी होने के बाद ही उनकी नौकरी समाप्त मानी जाएगी। गेंद अब सरकार के पाले में है।
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चंडीगढ़ : जेबीटी शिक्षकों की भर्ती के मामले में पिछले 14 सालों से विवाद चला आ रहा था। तत्कालीन चौटाला सरकार द्वारा 15 नवंबर 1999 में 3206 जेबीटी शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन निकालने और 2000 में उन्हें ज्वाइनिंग कराने के बाद ही भर्ती से वंचित रह गए अभ्यर्थी हाई कोर्ट चले गए थे। 1 विजय कुमार एवं अन्य की ओर से दाखिल इस केस में हरियाणा सरकार को पार्टी बनाया गया था। हाईकोर्ट ने करीब 14 साल बाद फैसला दिया है। इसी मामले में सीबीआइ कोर्ट के फैसले के बाद जहां पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला दस साल की सजा काट रहे हैं, वहीं पिछले साल जनवरी से ही जेबीटी शिक्षकों के भविष्य पर तलवार लटकी हुई थी। 1ल्ल 1999 में प्रदेश के 19 जिलों में 3206 जेबीटी शिक्षकों की भर्ती की गई थी।1ल्ल1999-2000 में शिक्षक घोटाले के समय शिक्षा मंत्रलय का प्रभार तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के पास था। ल्ल तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की सरकार ने 15 नवंबर 1999 को प्राथमिक शिक्षा निदेशालय के माध्यम से 3206 जेबीटी शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया। ल्ल 1 दिसंबर 2000 तक एक पखवाड़े में ही अभ्यर्थियों के साक्षात्कार ले लिए गए। ल्ल एक सप्ताह बाद 7 दिसंबर 2000 को चयनित अध्यापकों को ड्यूटी दे दी गई। चयन पूरा होने तक न तो सूची जारी की गई और न ही इसे सार्वजनिक किया गया। ल्लतत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक रजनी सेखरी सिब्बल ने वास्तविक चयन सूची को सील कर बंद लिफाफे में सील अलमारी में रख दिया था। ल्लउनके बाद प्राथमिक शिक्षा निदेशक का पद ग्रहण करने वाले आइएएस अधिकारी संजीव कुमार ने चौटाला सरकार पर लगाया कि उन्हें चयनित उम्मीदवारों की सूची को फर्जी ढंग से बदलने को कहा गया। ल्लसंजीव कुमार मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले गए। नवंबर 2003 में न्यायमूर्ति आरसी लाहौटी और न्यायमूर्ति अशोक भान की खंडपीठ ने सीबीआई को इस भर्ती घोटाले की जांच करने का निर्देश दिया। ल्ल 2004 में मामले की चार्जशीट दाखिल की गई थी। ल्ल सीबीआइ ने 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौटाला समेत 62 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। ल्ल अदालत में हुई गवाहियों से पता चला कि जेबीटी भर्ती के लिए उम्मीदवारों से 3 से 5 लाख रुपये लिए गए थे। ल्ल जनवरी, 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला व उनके विधायक पुत्र अजय चौटाला सहित 62 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया। ल्ल यह भी खुलासा हुआ कि इस घोटाले में याचिकाकर्ता संजीव कुमार भी बराबर का दोषी हैं। ल्ल वर्ष 2008 में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई और 17 दिसंबर 2012 को अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। ल्लअदालत ने चौटाला व अजय समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आइपीसी व पीसीए की धारा 120-बी (आपराधिक षडयंत्र), 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी) और 471 (वास्तविक की जगह जाली दस्तावेज का इस्तेमाल) धाराओं के तहत आरोप तय किए थे। ल्ल16 जनवरी, 2013 को सीबीआइ की विशेष अदालत के न्यायाधीश विनोद कुमार ने नई दिल्ली के रोहिणी सत्र न्यायालय में सभी आरोपियों को दोषी ठहराकर एक सप्ताह बाद 22 जनवरी 2013 को सजा सुनाने का फैसला दिया। ल्ल जांच के दौरान एक आरोपी बरी होने और छह आरोपियों की मृत्यु हो जाने के कारण शेष सभी 55 आरोपियों को अदालत ने सजा सुनाया गया।जागरण ब्यूरो, चंडीगढ़ : हरियाणा एवं पंजाब हाई कोर्ट के फैसले से प्रभावित जेबीटी शिक्षकों के समर्थन में कई संगठन खड़े हो गए हैं। उनका कहना है कि गड़बड़ी में इन शिक्षकों का दोष नहीं है, उन्होंने पूरी ईमानदारी से सेवा की है। सरकार उनके खिलाफ राजनीति से प्रेरित होकर कार्रवाई न करे। 1राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ हरियाणा के अध्यक्ष विनोद ठाकरान व राज्य महासचिव दीपक गोस्वामी ने कहा कि शिक्षकों का कोई दोष नहीं है। यह व्यवस्था की कमियां हैं। शिक्षकों ने पिछले 14 साल से पूरे लगन और ईमानदारी से काम किया है। ऐसे में सरकार इनके विरुद्ध किसी भी प्रकार की राजनीति से प्रेरित कार्रवाई न करे। दोनों नेताओं ने कहा कि इसके लिए शिक्षक स्वयं भी हाईकोर्ट की डबल बैंच व सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेंगे। अगर फिर भी किसी प्रकार की कोई जरूरत पड़ी तो संगठन आमरण अनशन को भी तैयार है। 1सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह 1हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के अध्यक्ष वजीर सिंह, महासचिव सीएन भारती, कोषाध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद व संगठन सचिव बलबीर सिंह ने कहा कि हजारों अध्यापकों द्वारा 13-14 वर्ष की सेवा करने के उपरांत उनके विपरीत फ सला आना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं है। उन्होंने हरियाणा सरकार से मांग की है कि शिक्षा व शिक्षक हित में इस निर्णय के विरोध में तुरंत उच्चतम न्यायालय में अपील करें। उनका संगठन संघर्ष में इन अध्यापकों के साथ रहेगा।1जागरण ब्यूरो, चंडीगढ़ : हरियाणा में प्राथमिक शिक्षकों की भर्तियां हमेशा से विवादों में रही हैं, चाहे वे किसी भी सरकार के कार्यकाल की हों। इन भर्तियों के तौर-तरीके पर सवाल उठते रहे हैं। कभी शिक्षकों को अदालत का सहारा लेना पड़ा तो कभी नौकरी बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। फिलहाल भी पिछली भर्तियां जांच के दायरे में चल रही हैं। इनेलो के शासनकाल में 2000 में 3206 प्राथमिक शिक्षकों की जो भर्ती हुई थी, उसे लेकर अब करीब 14 साल बाद फैसला आया है और यह फैसला भी इन शिक्षकों के प्रतिकूल है। जुलाई 2004 और दिसंबर 2004 में करीब 6500 प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती हुई थी, जिन्हें जिला परिषदों के अंतर्गत लगाया गया था। तब भी भर्ती को लेकर काफी विवाद हुआ था। इन शिक्षकों को पहले तीन साल (पहले साल पांच हजार, दूसरे साल छह हजार और तीसरे साल सात हजार) वेतनमान देने के बाद पूरा स्केल देने की बात कही गई थी। उसी समय विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार आई। कांग्रेस के शासनकाल में इस भर्ती पर सवालिया निशान लग गया था तथा इन शिक्षकों का विभागीय टेस्ट रख दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 10-8-2005 को तत्कालीन सरकार ने इन 6500 शिक्षकों को शिक्षा विभाग में समायोजित कर दिया गया। वर्ष 2008 में 3200 शिक्षकों की भर्ती की गई। तुरंत बाद सरकार ने एचटेट परीक्षा रख दी, जो पात्र अध्यापक एचटेट किए हुए थे, उनमें से 8400 अध्यापकों को प्राथमिक शिक्षक के तौर पर नियुक्तियां दी गई। अब इन शिक्षकों का मामला आज भी हाईकोर्ट में थंब इंप्रेशन (अंगूठा जांच) को लेकर चल रहा है। ऐसे में साफ कहा जा सकता है कि राज्य में प्राथमिक शिक्षकों की भर्तियों को लेकर विवाद ही रहा है।
ye court ka etihasik faisla hai.....
ReplyDeletewrong decision
Deletesir kya aap mughe 3206 tr ki list mail kar sakte hai its urgent my email id is surinder007vani@gmail.com.
ReplyDeleteNahi
ReplyDeleteJo 4500 candidate reh gaye the ubmese jayadatar 2004 se 2013 tak bharti (lagbhag 40000) me select ho gaye honge par inke ye 40000 chance bhi gaye ab ye vaapis saal 2000 ki tarah berozgaar honge aur 2014 ke tough competition me HTET bhi paas karana hoga yeh bhi ho sakta hai ki agale 5 saal nokrian bhi na nikle
ReplyDeleteSir pura bhiwani distt ka list jo ki deo / selection committee ne peepare ki thi agar possible ho to mail kar sakte he please.singhbhim746@gmail.com
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