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हरियाणा - बदहाल शिक्षा व्यवस्था ।
यशपाल शर्मा, चंडीगढ़
प्रदेश में शैक्षणिक ढांचे पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद हालात बयां करने लायक नहीं हैं। स्कूलों में कहीं शिक्षक नहीं हैं, तो कहीं बच्चों के बैठने के लिए भवन। अन्य सुविधाओं के बारे में तो कहना ही क्या? अदूरदर्शी नीतियों के कारण शिक्षा का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। शिक्षकों व बजट की कमी शैक्षणिक सुधार में आड़े आ रही है। 1शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बनाई जा रही योजनाएं शिक्षकों, छात्रों व अभिभावकों की भागीदारी न होने से सिरे नहीं चढ़ पा रहीं। शिक्षा विभाग की निजी क्षेत्र पर निर्भरता ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। सरकारी स्कूलों में छात्रओं को साइकिलें बांटने, बसों में निशुल्क यात्र, बच्चों को आठवीं कक्षा तक मुफ्त किताबें, मिड-डे मील, एजुकेशन वाया सेटेलाइट, समेस्टर सिस्टम जैसी कई योजनाएं चलाई गईं, लेकिन यह धरातल पर खरा नहीं उतर पाई हैं। छात्रओं को साइकिलें बांटने के बजाए 2500 रुपये की राशि दी जा रही है, बसों में मुफ्त यात्र का पास समय पर नहीं बनता, जबकि निशुल्क किताबें तो समय पर निजी कंपनियां स्कूलों में पहुंचाती ही नहीं। मिड-डे मील में दूषित पदार्थ मिलना आम बात है। 140 करोड़ की एजुकेशन वाया सेटेलाइट योजना को बंद हुए तीन वर्ष से भी अधिक का समय हो चुका है। सेमेस्टर सिस्टम को शिक्षकों के साथ ही छात्र भी नकार चुके हैं। उच्च स्तर की शिक्षा न मिलने पर सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या इस बार सात फीसद कम हुई है। बीते वर्ष 27 लाख छात्र सरकारी स्कूलों में थे। उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रतिस्पर्धा के कारण हालात कुछ संतोषजनक हैं।1शिक्षा का अधिकार कानून पूरी तरह से लागू नहीं 1प्रदेश में शिक्षा का अधिकार कानून पूर्णतया लागू नहीं हो पाया है। कानून के तहत प्राथमिक स्कूलों में तीस छात्रों पर एक शिक्षक व छठी से आठवीं तक 35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन राज्य में प्राइमरी स्कूलों में 45 बच्चों पर एक अध्यापक व छठी से आठवीं तक 50 छात्रों पर एक शिक्षक की व्यवस्था है। 1सरकारी स्कूलों में चाहिए 40 हजार शिक्षक1प्राइमरी में 11 से 12 हजार शिक्षकों की कमी है, जबकि अन्य मिडल, हाई व सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में 28 हजार के लगभग पद खाली चल रहे हैं। कुल मिलाकर सरकारी स्कूलों में चालीस हजार के आसपास शिक्षकों की कमी है। 1बढ़ानी होगी भागीदारी 1हरियाणा स्कूल अध्यापक संघ के राज्य प्रधान वजीर सिंह का कहना हैं कि सरकारी नीतियों ने शिक्षा ढांचे को खोखला कर दिया है। एनजीओ, अफसरशाही व नेता शिक्षा विभाग को चला रहे हैं। पहले शिक्षा की नीतियां शिक्षाविद व बुद्विजीवी बनाते थे, लेकिन अब इनका कोई योगदान नहीं रह गया है। शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए निर्णयों में शिक्षकों की भागीदारी बढ़ानी होगी। हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वजीर सिंह ने कहा कि शिक्षा विभाग को अफसरों ने प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है।
प्रदेश में शैक्षणिक ढांचे पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद हालात बयां करने लायक नहीं हैं। स्कूलों में कहीं शिक्षक नहीं हैं, तो कहीं बच्चों के बैठने के लिए भवन। अन्य सुविधाओं के बारे में तो कहना ही क्या? अदूरदर्शी नीतियों के कारण शिक्षा का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। शिक्षकों व बजट की कमी शैक्षणिक सुधार में आड़े आ रही है। 1शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बनाई जा रही योजनाएं शिक्षकों, छात्रों व अभिभावकों की भागीदारी न होने से सिरे नहीं चढ़ पा रहीं। शिक्षा विभाग की निजी क्षेत्र पर निर्भरता ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। सरकारी स्कूलों में छात्रओं को साइकिलें बांटने, बसों में निशुल्क यात्र, बच्चों को आठवीं कक्षा तक मुफ्त किताबें, मिड-डे मील, एजुकेशन वाया सेटेलाइट, समेस्टर सिस्टम जैसी कई योजनाएं चलाई गईं, लेकिन यह धरातल पर खरा नहीं उतर पाई हैं। छात्रओं को साइकिलें बांटने के बजाए 2500 रुपये की राशि दी जा रही है, बसों में मुफ्त यात्र का पास समय पर नहीं बनता, जबकि निशुल्क किताबें तो समय पर निजी कंपनियां स्कूलों में पहुंचाती ही नहीं। मिड-डे मील में दूषित पदार्थ मिलना आम बात है। 140 करोड़ की एजुकेशन वाया सेटेलाइट योजना को बंद हुए तीन वर्ष से भी अधिक का समय हो चुका है। सेमेस्टर सिस्टम को शिक्षकों के साथ ही छात्र भी नकार चुके हैं। उच्च स्तर की शिक्षा न मिलने पर सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या इस बार सात फीसद कम हुई है। बीते वर्ष 27 लाख छात्र सरकारी स्कूलों में थे। उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रतिस्पर्धा के कारण हालात कुछ संतोषजनक हैं।1शिक्षा का अधिकार कानून पूरी तरह से लागू नहीं 1प्रदेश में शिक्षा का अधिकार कानून पूर्णतया लागू नहीं हो पाया है। कानून के तहत प्राथमिक स्कूलों में तीस छात्रों पर एक शिक्षक व छठी से आठवीं तक 35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन राज्य में प्राइमरी स्कूलों में 45 बच्चों पर एक अध्यापक व छठी से आठवीं तक 50 छात्रों पर एक शिक्षक की व्यवस्था है। 1सरकारी स्कूलों में चाहिए 40 हजार शिक्षक1प्राइमरी में 11 से 12 हजार शिक्षकों की कमी है, जबकि अन्य मिडल, हाई व सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में 28 हजार के लगभग पद खाली चल रहे हैं। कुल मिलाकर सरकारी स्कूलों में चालीस हजार के आसपास शिक्षकों की कमी है। 1बढ़ानी होगी भागीदारी 1हरियाणा स्कूल अध्यापक संघ के राज्य प्रधान वजीर सिंह का कहना हैं कि सरकारी नीतियों ने शिक्षा ढांचे को खोखला कर दिया है। एनजीओ, अफसरशाही व नेता शिक्षा विभाग को चला रहे हैं। पहले शिक्षा की नीतियां शिक्षाविद व बुद्विजीवी बनाते थे, लेकिन अब इनका कोई योगदान नहीं रह गया है। शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए निर्णयों में शिक्षकों की भागीदारी बढ़ानी होगी। हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वजीर सिंह ने कहा कि शिक्षा विभाग को अफसरों ने प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है।
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