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नोटिफिकेशन पर रोक लगाने से हाईकोर्ट का इन्कार
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार द्वारा राज्य के बिश्नोई, जाट, जाट सिख, रोड और त्यागी जातियों को विशेष पिछड़ा वर्ग में शामिल किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन पर रोक लगाए जाने से फिलहाल इन्कार कर दिया है। 1याचिकाकर्ता का आरोप है कि यह आरक्षण बिना उचित सर्वे के दिया गया है। सिर्फ राजनैतिक फायदे के लिए ये नोटिफिकेशन जारी की गई है। अगली सुनवाई के लिए 1 सितंबर की तिथि निर्धारित की गई है। इस मामले में जवाब दायर करते हुए हरियाणा सरकार ने कहा कि यह आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम केंद्र सरकार के मामले में जारी किये गए दिशा निर्देशों के अनुसार ही किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस आरक्षण के खिलाफ हाल ही में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है। 1वहीं याचिकाकर्ता नीरज अत्री के वकील वरिष्ठ एडवोकेट वीके जिंदल ने कहा कि हरियाणा सरकार ने जाटों को आरक्षण देने के लिए जो पैमाना बनाया है वो गलत है। जाटों की तुलना सरकार ने अगड़ों से की है जबकि यह तुलना पिछड़ी जाति से की जानी चाहिए थी और वैसे भी 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना गलत है। पंचकूला के नीरज अत्री सहित चार लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर हरियाणा सरकार द्वारा इन 5 वगोर्ं को विशेष पिछड़ा वर्ग में शामिल किये जाने को असंवैधानिक बताते हुए सरकार द्वारा गत वर्ष 27 सितम्बर को जारी नोटिफिकेशन को रद किये जाने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने खासतौर पर जाटों को आरक्षण दिए जाने को पूरी तरह से गलत करार दिया है। याचिका के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1999 में एक मामले में आदेश देते हुए कहा था कि ऐसी किसी जाति को आरक्षण नहीं दिया जा सकता जो पहले से ही नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रयाप्त संख्या में हों। एचसीएस ग्रेडेशन की जनवरी 2013 की सूची के अनुसार 186 एचसीएस अधिकारियों में से 85 अधिकारी जाट समुदाय से हैं। इसी तरह अन्य जगहों पर भी इनका प्रयाप्त प्रतिनिधित्व है। लिहाजा ऐसे में इन्हे आरक्षण देना गलत है। वहीं, इससे पहले सेवा समिति भिवानी के सचिव मुरारी लाल गुप्ता सहित तीन लोगों की ओर से दायर जनहित याचिका में सरकार के इस फैसले और इस विषय पर जारी नोटिफिकेशन को रद किये जाने की मांग की गयी है।
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