Guest teachers ki regularisation ko court me chunoti

चंडीगढ़ : हरियाणा सरकार द्वारा कई सालों से कार्यरत गेस्ट टीचर को नियमित करने की दस साल की नीति विवाद में आ गई है। इसे चुनौती देने वाली याचिका पर जस्टिस टीएस ढींढसा पर आधारित खंडपीठ ने सरकार से जवाब तलब किया है। गौरतलब है कि सरकार ने पंद्रह हजार से ज्यादा गेस्ट टीचरों को नियमित करने के लिए दस साल की पॉलिसी लागू की है। रेवाड़ी निवासी अनिल कुमार व अन्य द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि हरियाणा सरकार ने 7 जुलाई को इन कर्मचारियों को नियमित करने के लिए दस साल की नीति का जो आदेश जारी किया है वह पूरी तरह से गैर-कानूनी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2006 में उमा देवी के केस में पांच जजों की खंडपीठ द्वारा दिए गए फैसले के भी खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट अपने आदेशों में कह चुका है कि बिना तय प्रक्रिया के नियुक्त किये गए कॉन्ट्रेक्ट, एडहॉक एवं अस्थायी कर्मियों को नियमित नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा किया जाता है तो यह उन योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय होगा जो तय प्रक्रिया के तहत अपनी नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे कि वह नियमित नियुक्तियां करे अन्यथा राज्य सरकारें गैर-कानूनी तरीके से कॉन्ट्रेक्ट, एडहॉक एवं अस्थायी कर्मियों की नियुक्तियां कर ही काम चलती रहेंगी।  सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार सिर्फ एक बार ही कर्मचारियों को यह फायदा दिया जा सकता है और हरियाणा सरकार वर्ष 2011 में कई कर्मचारियों को पहले ही नियमित कर चुकी है।  परन्तु अब हरियाणा सरकार एक बार फिर ठीक विधानसभा चुनावों से पहले कर्मचारियों को नियमित करने जा रही है जो न सिर्फ गलत गलत है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना भी है। सरकार सीधे तौर पर पिछले दरवाजे से पहले नियुक्तियां कर रही है और अब इन नियुक्त किये गए कर्मियों को नियमित किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने सरकार द्वारा इन कर्मियों को नियमित किये जाने के फैसले पर रोक लगाये जाने की हाई कोर्ट से मांग की है।  याचिका में बताया कि हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक गेस्ट टीचर के खिलाफ फैसला आया है फिर भी सरकार अग्रिम नीति बनाकर दस साल की नीति के तहत इनको पक्का करने का कदम उठा रही है।                       

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