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ऎसे तय होता है गर्भ में लिंग
युद्धरत राष्ट्र के नागरिकों में युद्ध के दौरान हुए गर्भाधान में नर अधिक होते हैं। ट्रक चालकों में, जिनके वृषण इंजन की गर्मी से लम्बे समय तक प्रभावित रहते हैं, उनमें लड़कियों का गर्भाधान अधिक होता है। डायोक्सिन नामक गैस से प्रभावित होने पर लड़कों का गर्भाधान काफी कम होता है।
जन्म के समय बच्चों में लिंग अनुपात क्या होगा, उसे निर्धारित करने वाले कौन-कौन से कारक हंै? यह समझना इतना सरल नहीं है जितना साधारणतया सोचा जाता है। यह सर्वविदित है कि सामान्यत: जन्म के समय लड़के अनुपात में लड़कियों से अधिक होते हैं (104-107 लड़के प्रति 100 लड़कियां) लेकिन यह अनुपात भिन्न हो सकता है। जन्म के समय लिंग अनुपात क्या होगा यह निम्न बातों पर निर्भर करता है -
(1) गर्भाधान के समय, यानी प्रारंभिक लिंग अनुपात क्या था, और
(2) गर्भावस्था के दौरान किस लिंग के बच्चे जीवित रहे और किस लिंग-विशेष के बच्चो का क्षरण हो गया, यानी गर्भ में ही नष्ट हो गए (स्वत: गर्भपात, गर्भ समापन व भू्रण हत्या में लिंग अनुपात)। जन्म के समय लिंग अनुपात को द्वितीयक लिंग अनुपात कहते हैं। प्राथमिक और द्वितीयक लिंग अनुपात का निर्धारण करने वाले कारक अलग-अलग होते हंै,
प्राथमिक लिंग अनुपात के कारक
(1) नर (वाई) और मादा (एक्स) शुक्राणुओंं की गतिशीलता भिन्न होती है। योनि में स्खलन के उपरान्त कौन से लिंग का शुक्राणु स्त्री बीज के पास पहुंचेगा, बच्चे का लिंग उसी से निर्धारित होगा।
(2) नर और मादा शुक्राणुओं का जीवन काल भी अलग होता है। स्खलन के उपरान्त, स्त्री बीज के उपलब्ध होने तक, योनि में, अगले 48 घंटों में, कितने नर और कितने मादा शुक्राणु जीवित रहेंगे, यह भी बच्चे के लिंग निर्धारण का कारक होता है।
(3) स्त्री बीज डिम्ब ग्रंथि से उत्सर्ग होकर डिम्बवाहिनी नली में आता है जहां शुक्राणु से उसका मिलन होता है। वीर्य स्खलन के समय स्त्री बीज की अवस्था क्या थी, इस पर निर्भर करता है कि वह नर शुक्राणु को आकर्षित करेगा या मादा शुक्राणु को और उसका मिलन इनमें से किससे होगा।
(4) योनि पथ में स्थित तरल की क्षारीयता या अम्लीयता लिंग विशेष में शुक्राणुओं की गतिशीलता और जीवन काल को प्रभावित करती है।
(5) माता के रक्त में प्रवाहित जननग्रंथिपोषक हॉर्मोन का स्तर भी लिंग निर्धारण को प्रभावित करता है। अधिक मात्रा में होने पर लड़कियों का अनुपात अधिक होता है।
जन्म के समय लिंग अनुपात (द्वितीयक लिंग अनुपात) के कारक - यह निर्भर करेगा कि गर्भाधान के बाद, लेकिन गर्भावस्था के दौरान कौन से लिंग विशेष के भू्रणों का क्षरण हुआ है?
(1) गर्भावस्था के 3-5 महीनों में होने वाले स्वत: गर्भपात में नर बच्चे अधिक होते हैं, उनका क्षरण अधिक अनुपात में होता है। 6-8 महीने में होने वाले स्वत: गर्भपात में नर बच्चे कम होते है और आखिरी अवस्था में होने वाले गर्भपात में नर बच्चों का अनुपात अधिक होता है।
(2) कुछ महिलाओं में एक लिंग विशेष के भ्रूण के खिलाफ नष्ट करने की शक्ति विकसित हो जाती है।
(3) सामाजिक एवं जनसांख्यिकी कारण भी जन्म के समय लिंग अनुपात को प्रभावित करते हैं, यथा, माता-पिता की उम्र, जन्म क्रम, आर्थिक एवं जीवन स्तर।
गर्भ धारण, लिंग निर्धारण और जन्म पर पुत्र या पुत्री का होना क्या ऋ तु विशेष पर निर्भर करता है? क्या वर्ष के किसी माह विशेष में गर्भ धारण पुत्र या पुत्री का अधिक होना होता है या किसी माह में धारित लिंग विशेष के गर्भस्थ शिशुओं का क्षरण अधिक होता है?
जयपुर के एक बड़े अस्पताल के 30 वर्षो के हर महीने में जन्मे नर व मादा शिशुओं के आंकड़े रोचक तथ्य उजागर करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार इस अस्पताल में 1972 से 2001 तक 23,933 जीवित बच्चों का जन्म हुआ। इनमें 53 प्रतिशत नर व 47 प्रतिशत मादाएं थीं। पर 3 दशक के आंकड़ों का वर्षवार आकलन दर्शाता है कि सत्तर के दशक में जहां बालिकाएं अधिक होती थीं, वे समयोपरान्त घट गईं और अब बालक अधिक होते हैं। 1972 और 1973 में जीवित बच्चों में 53 प्रतिशत बालिकाएं हुई थीं। सत्तर के दशक में जन्मे बच्चों में 50.3 प्रतिशत बालिकाएं और 49.7 प्रतिशत बालक थे। अगले दशक 1981 से 1990 के शुरू में ही यह अनुपात उलट गया और इस दशक में 48.7 प्रतिशत बालिकाएं और 51.3 प्रतिशत बालक हुए।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि जीवित जन्मे बच्चों में लिंग अनुपात में यह बदलाव लिंग निर्धारण की विधियों के उप्लब्ध होने के पहले ही हो गया था। 1991-2000 के दशक में यह और गिर गया - 44.5 प्रतिशत बालिकाएं और 55.5 प्रतिशत बालक हो गए। प्रसव पूर्व इतने अधिक मादा भू्रणों का क्षरण चिकित्सकीय विश्लेषण मांगता है। बालिका भू्रण गर्भपात को इसका एक मात्र कारण मानने का कोई आधार नहीं है। प्रसव पूर्व मादा भू्रण नष्ट होने के कारणों में ऎच्छिक लिंग निर्धारित गर्भपात मात्र एक और अनुपात में छोटा कारण तो हो सकता है, पर एक मात्र कारण सम्भव नहीं लगता। अध्य्यन के रोचक तथ्य थे कि प्रतिमाह जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या और उनका लैंगिक अनुपात मौसम और महीनों के अनुसार अलग-अलग होता है। सर्वाधिक प्रसव अगस्त महीने में होते हैं। 30 वषोंü के यौगिक आंकड़ों के अनुसार ही नहीं वरन् 70, 80 व 90 के दशकों के पृथक-पृथक यौगिक आंकड़ों में भी यही पाया गया।
अर्थात् मात्र किसी वर्ष विशेष का संयोग नहीं था। इसका अर्थ यह हुआ कि या तो नवम्बर में गर्भधारण अधिक होते हैं या फिर इस महीने में गर्भस्थ होने वाले शिशु प्रसव तक जीवित रहने में अधिक सक्षम होते हैं। जून में जन्म लेने वाले बच्चों में बालकों का अनुपात सर्वाधिक 55 प्रतिशत है यानी सितम्बर में गर्भधारण से पुत्र प्राप्ति का योग अधिक है। मादा भू्रण के लिए यह महीना गर्भधारण के लिए शुभ नहीं है। यह तथ्य भी 30 साल के यौगिक आंकड़ों में ही नहीं वरन् हर दशक के आंकड़ों के लिए भी यही था।
लिं ग अनुपात को प्रभावित करने वाले कारक अनेक होते हैं और वे अलग तरह से व अलग-अलग अवस्था में प्रभावित करते हैं। लिंग अनुपात को प्रभावित करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है। किसका कितना प्रभाव होता है, इस पर कई अनुसंधान हो चुके हैं।
जैसे युद्धरत राष्ट्र के नागरिकों में युद्ध के दौरान हुए गर्भाधान में नर अधिक होते हैं। ट्रक चालकों में, जिनके वृषण इंजन की गर्मी से लम्बे समय तक प्रभावित रहते हैं, उनमें लड़कियों का गर्भाधान अधिक होता है। डायोक्सिन नामक गैस से प्रभावित होने पर लड़कों का गर्भाधान काफी कम होता है।
- डॉ. गोपाल काबरा
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