सोशल साइट पर टिप्पणी के लिए गिरफ्तारी का कानून हो रद्द



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अदालत ने कहा कि धारा 66ए स्पष्ट नहीं
सुप्रीम कोर्ट को वेबसाइट्स पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों की गिरफ्तारी पर आपत्ति
राजीव सिन्हा
नई दिल्ली। सर्वोच्च अदालत ने सोशल वेबसाइट्स पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों की गिरफ्तारी पर आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 66-ए के तहत पुलिस को मिले गिरफ्तारी के अधिकार में उचित दिशानिर्देश का अभाव है क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि पुलिस को कब अपने इस अधिकार का उपयोग करना चाहिए।
न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रावधानों के उलट आईटी एक्ट की धारा 66ए में यह स्पष्ट नहीं है कि किन परिस्थितियों में इसका इस्तेमाल होना चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि अगर किसी ने अपमानजनक बात न भी कही हो लेकिन अगर उसके इस बयान से कोई नाराज है तो इस धारा का इस्तेमाल हो सकता है। पूर्व में ऐसी घटनाएं देखने को मिली हैं जब लोगों को गलत गिरफ्तार किया गया। मालूम हो कि इस धारा के तहत सोशल वेबसाइट्स पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों के लिए सजा का प्रावधान है। इसके तीन साल तक की कैद हो सकती है। केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सोशल वेबसाइट्स पर आपत्तिजनक टिप्पणी डालने पर गिरफ्तारी की घटनाएं कभी-कभार होती हैं। इस पर अदालत ने कहा कि यह यदा-कदा भी होती है जो यह निर्लज्जतापूर्ण और गंभीर है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल किया कि क्या आईपीसी के प्रावधान इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है जो आईटी एक्ट की धारा-66ए को लाने की नौबत आई। इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सोली सोराबजी, प्रशांत भूषण आदि ने कहा कि आईपीसी के प्रावधान बहुत ही सही ढंग से ड्राफ्ट किए गए हैं। इतना ही इसमें उन तमाम परिस्थितियों का जिक्र है, जब इन प्रावधानों का इस्तेमाल हो सके। वहीं 66 ए स्पष्ट नहीं है।
इस प्रावधान का इस्तेमाल पुलिस की इच्छा पर छोड़ दिया गया है।
इसके बाद पीठ ने कहा कि जिन घटनाओं का याचिकाकर्ताओं द्वारा जिक्र किया है, उनमें ऐसा कोई बयान नहीं है जिससे देश भी संप्रभुता और एकता के लिए खतरा हो। पीठ ने कहा कि आपत्तिजनक शब्द को अलग-अलग संदर्भ में अलग-अलग तरीके से लिया जाता है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सोशल वेबसाइट्स पर आपत्तिजनक टिप्पणी डालने पर गिरफ्तारी की घटनाएं कभी-कभार होती हैं। इस पर अदालत ने कहा कि यह यदा-कदा भी होती है जो यह निर्लज्जतापूर्ण और गंभीर है


सोशल साइट पर टिप्पणी के लिए गिरफ्तारी का कानून हो रद्द
जाब्यू, नई दिल्ली : फेसबुक सरीखी सोशल साइट पर टिप्पणियों को लेकर कई सवाल भले ही उठ रहे हों, लेकिन इसे बरकरार रखने की पुरजोर लड़ाई शुरू हो गई है। मंगलवार से सुप्रीम कोर्ट में आइटी एक्ट के विभिन्न प्रावधानों और धारा 66ए की वैधानिकता पर सुनवाई शुरू हुई तो यह मांग भी तेज हो गई कि सोशल साइट पर टिप्पणी करने वालों को गिरफ्तार करने का कानून गलत है। ऑनलाइन टिप्पणी पर गिरफ्तारी का अधिकार देने वाली आइटी एक्ट की धारा 66ए निरस्त होनी चाहिए। दो साल पहले फेसबुक पर टिप्पणी करने पर मुंबई की दो किशोरियों की गिरफ्तारी के बाद आइटी एक्ट की धारा 66ए की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी।

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