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शिक्षा विभाग की रेशनेलाइजेशन नीति किसी ऐसी अंधी गुफा का रूप ले चुकी जिसका कोई छोर दिखाई नहीं दे रहा। बार-बार अपने ही निर्णय को गलत, अतार्किक मान कर बदलाव लाया जा रहा है और शिक्षा ढांचे को पटरी पर लाने की दौड़ वहीं समाप्त हो रही है जहां से शुरू होती है। अब एक पुराने नियम को नया कलेवर देते हुए शिक्षा विभाग ने फैसला किया है कि पीजीटी अब केवल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में ही पढ़ाएंगे। इसके लिए स्कूल प्रमुखों से बाकायदा फार्म भरवा कर हाई स्कूलों में पढ़ा रहे पीजीटी को सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में भेजने का काम शुरू भी हो चुका। शिक्षा विभाग ने वर्षो पहले थ्री टायर सिस्टम बनाया था जिसे अब तक लागू नहीं किया जा सका, इसकी कवायद नए सिरे से पीजीटी से शुरू की जा रही है। पहले इस दिशा में जितनी भी कोशिशें हुईं, उनमें तनाव, टकराव और आंदोलन के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ। मामल की गंभीरता समझने की कोशिश न सरकार की ओर से हुई, न शिक्षा विभाग ने ठोस पहल की। अब भी लक्ष्य प्राप्त करना उतना आसान नहीं जितना विभाग विचार कर रहा है। विडंबना यह रही है कि शिक्षा विभाग ने किसी भी नीति पर निर्णय से पहले उसके व्यावहारिक पहलुओं, दिक्कतों, अनुमानों पर गंभीर मंथन नहीं किया। अध्यापकों के ग्रेडों को देखते हुए क्या आज स्थिति समान है? क्या जेबीटी, टीजीटी और पीजीटी की संख्या ऐसी संतुलित है कि पहली से दस जमा दो कक्षा तक सामान्य रूप से कक्षाओं को पढ़ाया जा सकेगा? किसी एक में यदि विसंगति रही तो स्वाभाविक तौर पर तीनों वर्गो का गणित गड़बड़ा जाएगा। पीजीटी वर्ग में सबसे अधिक भर्ती होने के कारण यदि सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में नियुक्ति पूरी हो गई तो सरप्लस अध्यापकों को कहां भेजा जाएगा? स्थानांतरण के बाद भी यदि जगह नहीं मिली तो इन्हीं पीजीटी को हाई स्कूलों में लगाना पड़ेगा। इससे अराजकता की स्थिति पैदा होगी जो अध्यापक असंतोष का कारण बनेगी। शिक्षा विभाग को चाहिए कि रेशनेलाइजेशन के अव्यावहारिक पहलुओं की पहचान कर उन्हें तर्कसंगत रूप दिया जाए। शिक्षा ढांचे के विस्तार पर तो जरूरत से ज्यादा जोर दिया जा रहा है इतने संसाधन झोंके जा रहे हैं पर व्यवस्थित रूप न दिए जाने के कारण तंत्र अपने ही बोझ से चरमराता दिखाई दे रहा है। संसाधनों का अपव्यय न हो, नई नीति या योजना बोझ न बने, यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक स्तर पर गंभीर मंथन की आवश्यकता है।
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