दो वर्ष से सेवारत कंप्यूटर
शिक्षकों की विभाग में समायोजित होने
की उम्मीद पूरी तरह से टूट गई है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने
शिक्षकों की नियुक्तियों को बैक डोर
एंट्री करार दिया है। आउटसोर्सिग के तहत भरे
गए पदों की विभागों में समायोजन की कोई
नीति न होने की बात कहकर सरकार ने
शिक्षकों के लिए सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। अब
शिक्षकों के सामने कंपनियों के तहत
डयूटी बजाने और रुका हुआ एक वर्ष का वेतन
हासिल करने की चुनौती है।
सरकार के कड़े रुख ने शिक्षकों की मुश्किलों में
भी इजाफा किया है। अभी दो महीने
कंपनियों के साथ सरकार का कंप्यूटर
शिक्षा को लेकर करार है और मार्च तक इन्हीं के
तहत शिक्षकों को सेवाएं देनी होगी। मार्च में
कंपनियों का सरकार से समझौता खत्म
हो जाएगा, नए सिरे से टेंडर लेने पर कंपनियां इन
शिक्षकों को भर्ती करें या नहीं, ये उनके
अधिकार क्षेत्र में है। ऐसे में लगभग 27
सौ शिक्षक दो महीने वाले सड़क पर भी आ
सकते हैं। करार खत्म होने से पहले कंपनियों से एक
वर्ष का रुका वेतन पाने के लिए
भी शिक्षकों को काफी मशक्कत
करनी होगी। शिक्षा विभाग के
अधिकारियों के भी पक्ष में न होने के कारण
सिक्योरिटी राशि, प्रशिक्षण के नाम पर
ली फीस और ईएसआइ के नाम पर वसूली गई
राशि भी शिक्षकों की फंसती नजर आ
रही है। बीते एक वर्ष से कंप्यूटर शिक्षक समय-
समय पर आंदोलनरत करते रहे हैं, लेकिन
कंपनियों की हनक के आगे उनकी एक नहीं चल
रही। अब कंप्यूटर शिक्षकों ने दोबारा से आमरण
अनशन का निर्णय लिया है। यह
कितना सही साबित होता है, ये तो भविष्य
के गर्भ में है।
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