www.teacherharyana.blogspot.com (Recruitment , vacancy , job , news) www.facebook.com/teacherharyana
क्लर्कों को लेक्चरर बनाने से सरकार का फिर इंकार
सुरजीत सिंह सत्ती
चंडीगढ़। लेक्चरर के लिए शैक्षणिक योग्यता रखने वाले क्लर्कों को हरियाणा सरकार ने बतौर लेक्चरर नियुक्त करने से फिर इंकार कर दिया है। अवमानना के एक मामले में प्रमुख शिक्षा सचिव एमएल कौशिक ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जवाब दाखिल किया है कि यह दावा नकार दिया गया है। जस्टिस हरिंदर सिंह सिद्धू की एकल बेंच ने अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को शिक्षा विभाग के आदेश को चुनौती देने की छूट दे दी है।
डीपीआई पंजाब ने आठ जुलाई 1965 को हिदायत दी थी कि लेक्चरर और मास्टर भर्ती में 50 फीसदी पद सीधे, डेपुटेशन या तबादला आधार पर भरे जाएं। हरियाणा गठन के सालों बाद तक प्रदेश में पंजाब के नियम चलते रहे और इसी हिदायत के आधार पर क्लेरिकल स्टाफ के कई ऐसे कर्मचारियों ने उन्हें तबादला आधार पर लेक्चरार भर्ती करने की मांग की थी। इसमें हवाला दिया गया था कि मिनिस्टीरियल स्टाफ से तबादला आधार पर भी भर्तियां हुईं। सरकार ने यह मांग नहीं मानी थी और ये कर्मचारी हाईकोर्ट आ गए थे। याचिका की सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार ने कहा था कि पंजाब डीपीआई की यह हिदायत 16 नवंबर 2011 को वापस ली जा चुकी है और हरियाणा स्टेट स्कूल लेक्चरर (ग्रुप-सी) नियम-9 वर्ष 1998 में बनाया जा चुका है।
सरकार ने कहा था कि लेक्चरर इसी नियम के तहत भर्ती किए जाते हैं। जस्टिस टीएस ढींडसा की एकल बेंच ने कर्मचारियों की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि जब नियम बन चुके हैं तो डीपीआई की हिदायत का कोई औचित्य नहीं रह जाता। इन कर्मचारियों ने एकल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। जस्टिस सूर्यकांत की डिवीजन बेंच ने सात अगस्त 2013 को अपील का निपटारा किया था। अरुणा देवी के मामले में बेंच ने कहा था कि जिस वक्त अरुणा ने लेक्चरर भर्ती का दावा किया था, उस वक्त डीपीआई की हिदायत वापस नहीं ली गई थी। अपील के निपटारे में सरकार को निर्देश दिया था कि अरुणा के दावे पर फैसला लिया जाए।
डिवीजन बेंच के फैसले के मुताबिक अरुणा ने सरकार के पास अपना दावा पेश किया। उसने कहा था कि सरकार ने हिदायत 16 नवंबर 2011 को वापस ली, लेकिन उसने दावा जनवरी 2011 में ही कर दिया था। सरकार ने उसके दावे पर कोई फैसला नहीं लिया था। इसी कारण अरुणा ने तत्कालीन प्रमुख शिक्षा सचिव सुरीना राजन के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना करने पर कार्रवाई की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। याचिका पर प्रमुख शिक्षा सचिव को नोटिस जारी किया गया था। अब मौजूदा प्रमुख शिक्षा सचिव एमएल कौशिक ने जवाब दाखिल किया है कि हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक अरुणा के दावे पर गौर किया गया और दावा ठुकरा दिया गया है। जस्टिस सिद्धू की एकल बेंच ने अब अवमानना याचिका निपटा दी है, लेकिन साथ ही अरुणा को प्रमुख शिक्षा सचिव की ओर से उसका दावा नकारने के आदेश को चुनौती देने की छूट दे दी है।
शिक्षा सचिव के खिलाफ अवमानना याचिका का निपटारा
क्लेरिकल स्टाफ ने शैक्षणिक योग्यता के आधार पर की थी लेक्चरर भर्ती की मांग
सरकार ने ठुकरा दी मांग, अवमानना याचिका में दिया जवाब ।
चंडीगढ़। लेक्चरर के लिए शैक्षणिक योग्यता रखने वाले क्लर्कों को हरियाणा सरकार ने बतौर लेक्चरर नियुक्त करने से फिर इंकार कर दिया है। अवमानना के एक मामले में प्रमुख शिक्षा सचिव एमएल कौशिक ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जवाब दाखिल किया है कि यह दावा नकार दिया गया है। जस्टिस हरिंदर सिंह सिद्धू की एकल बेंच ने अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को शिक्षा विभाग के आदेश को चुनौती देने की छूट दे दी है।
डीपीआई पंजाब ने आठ जुलाई 1965 को हिदायत दी थी कि लेक्चरर और मास्टर भर्ती में 50 फीसदी पद सीधे, डेपुटेशन या तबादला आधार पर भरे जाएं। हरियाणा गठन के सालों बाद तक प्रदेश में पंजाब के नियम चलते रहे और इसी हिदायत के आधार पर क्लेरिकल स्टाफ के कई ऐसे कर्मचारियों ने उन्हें तबादला आधार पर लेक्चरार भर्ती करने की मांग की थी। इसमें हवाला दिया गया था कि मिनिस्टीरियल स्टाफ से तबादला आधार पर भी भर्तियां हुईं। सरकार ने यह मांग नहीं मानी थी और ये कर्मचारी हाईकोर्ट आ गए थे। याचिका की सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार ने कहा था कि पंजाब डीपीआई की यह हिदायत 16 नवंबर 2011 को वापस ली जा चुकी है और हरियाणा स्टेट स्कूल लेक्चरर (ग्रुप-सी) नियम-9 वर्ष 1998 में बनाया जा चुका है।
सरकार ने कहा था कि लेक्चरर इसी नियम के तहत भर्ती किए जाते हैं। जस्टिस टीएस ढींडसा की एकल बेंच ने कर्मचारियों की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि जब नियम बन चुके हैं तो डीपीआई की हिदायत का कोई औचित्य नहीं रह जाता। इन कर्मचारियों ने एकल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। जस्टिस सूर्यकांत की डिवीजन बेंच ने सात अगस्त 2013 को अपील का निपटारा किया था। अरुणा देवी के मामले में बेंच ने कहा था कि जिस वक्त अरुणा ने लेक्चरर भर्ती का दावा किया था, उस वक्त डीपीआई की हिदायत वापस नहीं ली गई थी। अपील के निपटारे में सरकार को निर्देश दिया था कि अरुणा के दावे पर फैसला लिया जाए।
डिवीजन बेंच के फैसले के मुताबिक अरुणा ने सरकार के पास अपना दावा पेश किया। उसने कहा था कि सरकार ने हिदायत 16 नवंबर 2011 को वापस ली, लेकिन उसने दावा जनवरी 2011 में ही कर दिया था। सरकार ने उसके दावे पर कोई फैसला नहीं लिया था। इसी कारण अरुणा ने तत्कालीन प्रमुख शिक्षा सचिव सुरीना राजन के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना करने पर कार्रवाई की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। याचिका पर प्रमुख शिक्षा सचिव को नोटिस जारी किया गया था। अब मौजूदा प्रमुख शिक्षा सचिव एमएल कौशिक ने जवाब दाखिल किया है कि हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक अरुणा के दावे पर गौर किया गया और दावा ठुकरा दिया गया है। जस्टिस सिद्धू की एकल बेंच ने अब अवमानना याचिका निपटा दी है, लेकिन साथ ही अरुणा को प्रमुख शिक्षा सचिव की ओर से उसका दावा नकारने के आदेश को चुनौती देने की छूट दे दी है।
शिक्षा सचिव के खिलाफ अवमानना याचिका का निपटारा
क्लेरिकल स्टाफ ने शैक्षणिक योग्यता के आधार पर की थी लेक्चरर भर्ती की मांग
सरकार ने ठुकरा दी मांग, अवमानना याचिका में दिया जवाब ।
No comments:
Post a Comment
thanks for your valuable comment