सरकारी स्कूलों में नर्सरी पर जोर दिया जाए तो बढ़ सकती है दाखिलों की संख्या


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नर्सरी " सरकारी स्कूलों में नर्सरी पर जोर दिया जाए तो बढ़ सकती है दाखिलों की संख्या
प्रदेश के 50 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में नर्सरी कक्षाएं चल रही,
मगर शिक्षक मांगते हैं तो नकारते हैं
कहते हैं जिस मकान की नींव मजबूत होगी, वहां मकान भी सुरक्षित
बनेगा। कुछ यही नियम शिक्षा में भी होता है। यदि बच्चों को
शुरूआती तौर पर ही स्कूलों में बेहतर शिक्षा मिले तो आगे भी
उसकी पढ़ाई बेहतर होती है, लेकिन प्रदेश में शिक्षा विभाग के
नियम कायदे भी अजीब हैं।
प्रदेश के 50 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में नर्सरी कक्षाएं चल रही हैं,
लेकिन जब अलग से शिक्षक मांगे जाते हैं तो विभाग का जवाब
होता है कि शिक्षा का अधिकार नियम 2009 के तहत नर्सरी
कक्षा का प्रावधान ही नहीं है। इसका पूरा फायदा प्राइवेट
स्कूल उठा रहे हैं। असलियत में कक्षाएं चल रही हैं। वहीं नर्सरी
कक्षाओं की ओर सरकार विभाग जोर दे तो इससे कहीं कहीं
सरकारी स्कूलों की स्ट्रेंथ बढ़ेगी। ऐसे में सरकार शिक्षा विभाग
को सरकारी स्कूलों में नींव पर यानिकी नर्सरी कक्षा पर ध्यान
देना चाहिए।
इसलिए चल रही नर्सरी कक्षाएं
सरकारी स्कूलों में साल साल के बच्चे का पहली कक्षा में दाखिले
के आदेश जारी हुए हैं। ऐसे में यदि कोई पांच साल का बच्चा अाता
है तो उसे नर्सरी कक्षा के नाम से दाखिल कर लिया जाता है।
हालांकि विभाग की ओर से न तो उनकी संख्या आंकड़ों में ली
जाती है, ही न अलग से अध्यापक दिया जाता है, ऐसे में उनपर उतना
ध्यान नहीं दिया जाता, जितना ध्यान दिया जाना चाहिए।
50 प्रतिशत स्कूलों में नर्सरी कक्षाएं चल रही हैं, इसके बावजूद
विभाग अजीब से जवाब देकर शिक्षक देने से पीछे हट रहा है।
अध्यापकों का मानना है कि सरकारी स्कूलों में नर्सरी होने से
प्राइवेट स्कूल शुरुआती शिक्षा पाने वाले बच्चों को अपनी ओर
खींच लेते हैंं। जिसके बाद आगे की पढ़ाई वहीं होती है। यदि शुरूआत
सरकारी स्कूल से हो जाए और बेहतर शिक्षा मिले तो यही बच्चे
सरकारी स्कूलों से पढ़ कर जाते हैं। प्राइमरी कक्षाओं पर विभाग
की ध्यान होने का मुख्य कारण यह भी है कि स्कूलों के लिए
नीतियां बनाने वाले अफसर सरकारी स्कूलों से पढ़े नहीं होते हैं।
यही कारण है कि तरह-तरह की योजनाओं में गड़बड़ी होती है।

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