प्रदेश के सरकारी व निजी कॉलेजों में बीएड की 60 हजार में से 40 हजार सीटें खाली रहना हैरानी भरा होने के साथ चिंताजनक भी है। सवाल उठ रहा है कि क्या युवा वर्ग का रुझान शिक्षा क्षेत्र से घट रहा है? क्या अन्य विकल्प उसकी प्राथमिकता में
शामिल हो गए? बीएड कोर्स दो वर्ष किया जाना क्या इस उदासीनता का मुख्य कारण है? क्या सरकारी शिक्षा ढांचे में आई अराजकता इसके लिए जिम्मेदार है? अनेक अन्य प्रश्न भी पूछे जा रहे हैं लेकिन दो गंभीर पहलुओं पर गहन मंथन करने की अधिक जरूरत है। सरकारी नीतियों की अस्पष्टता व अस्थिरता के चलते गेस्ट, जेबीटी और पीजीटी को पीड़ादायक अनुभवों का सामना करना पड़ा है। एक समय गेस्ट टीचर सरकार के चहेते थे, विविध कारण बता कर उनकी सेवाएं जारी रखने की कवायद होती रही, जब वे शिक्षा तंत्र में रम गए, बच्चों, अभिभावकों के चहेते बने तो हजारों को एक ही झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। चयन प्रक्रिया को दुरुस्त न बनाए जाने के कारण जेबीटी शिक्षकों को दो चरणों में कोर्ट के आदेश से पीड़ा ङोलनी पड़ी, अपने आदेश और व्यवस्था की पैरवी करने में सरकार सक्षम नहीं दिखी। लचर नीति का ही दंश पीजीटी को ङोलना पड़ रहा है। इन उदाहरणों से शिक्षा क्षेत्र में अप्रिय, असुखद संदेश ही गया, संभव है युवाओं की नए दाखिलों में घोर उदासीनता का यह सबसे बड़ा कारण हो। किसी असुरक्षित क्षेत्र में कोई क्यों जाना चाहेगा? शिक्षक पात्रता परीक्षा तक का कार्यक्रम अंतिम क्षणों में बदला जा सकता है तो यह संदेश भी युवा वर्ग तक पहुंचा है कि शिक्षा क्षेत्र में असुरक्षा तो आ ही गई, यह अस्थिर भी हो गया। सरकार के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती इस क्षेत्र के प्रति युवा वर्ग में विश्वास बहाल करने की है। सरकार को अध्यापकों की कमी का अहसास है फिर भी भर्ती के लिए पिछले दस साल में एक भी प्रयास ऐसा नहीं किया गया जिसे उत्साहजनक कहा जा सके। यह भी कड़वी सच्चाई है कि निजी शिक्षण कॉलेजों को मान्यता देने में सरकार ने आवश्यकता से अधिक उदारता दिखाई, इतनी उदारता व तत्परता यदि खाली पदों को भरने में दिखाई जाती तो शिक्षा क्षेत्र में आज अराजकता की स्थिति पैदा नहीं होती। तमाम कारणों की तह तक जाकर सरकार को अपनी नीतियों में व्यावहारिकता और पारदर्शिता लाने के लिए गहन मंथन करना चाहिए, बहुत विलंब हो चुका, कहीं ऐसा न हो कि हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएं।
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