राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़ : हरियाणा के पंचायत चुनाव में शैक्षणिक योग्यता के फैसले को दमदार साबित करने के लिए सरकार ठोस आधार तैयार करने में जुट गई है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला चाहे जो भी रहे, लेकिन सरकार पंचायत चुनाव में शैक्षणिक योग्यता के निर्णय से किसी सूरत में नहीं पलटेगी। कानूनविदों के साथ हो रही मंथन बैठकों में सरकार ने यह पूरी तरह से
साफ कर दिया है। सरकार के इसी रुख को देखते हुए कानूनविद भी सुप्रीम कोर्ट का भरोसा जीतने के हरसंभव प्रयासों में जुट गए हैं।1 प्रदेश सरकार ने पंचायत चुनाव लड़ने के लिए चार शतेर्ं तय की हैं। सबसे अधिक विवाद उम्मीदवार के पांचवीं, आठवीं और दसवीं पास अनिवार्य होने पर खड़ा किया जा रहा है। सरकार को 7 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करना है। इसके लिए सरकार की अधिकारियों व कानूनविदों के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है। सरकार आदर्श गांव, ई-पंचायतें, ग्राम सचिवालय और इंटरनेट आधारित माहौल के लिए पढ़े-लिखे जनप्रतिनिधियों को आधार बनाकर अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखने की तैयारी में है। प्रदेश सरकार ने अधिकारियों को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तथा सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (एसइसीसी) 2011 के आंकड़ों का भी अवलोकन करने को कहा है। प्रदेश सरकार को लग रहा कि सामान्य श्रेणी के जितने पदों पर पंचायत चुनाव होना है, उससे 51 गुणा उम्मीदवार (दावेदार) राज्य में मौजूद हैं। अनुसूचित जाति के पदों के लिए 40 गुणा तक उम्मीदवार चिह्नित किए गए हैं। यानि याचिकाकर्ता की ओर से यदि सुप्रीम कोर्ट में उम्मीदवारों की कमी का दावा पेश किया जाता है तो कानूनविद आंकड़ों के आधार पर इसका जवाब देने की भी तैयारी में हैं। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर 2011 में दर्ज आंकड़ों के आधार पर मिडिल और उससे ऊपर 20 साल या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या 41.30 प्रतिशत है। इसमें पुरुष 33.34 प्रतिशत और महिलाओं की संख्या 28.30 प्रतिशत है। मैटिक और उससे अधिक पढ़े लिखे इसी श्रेणी के युवाओं की संख्या 34.81 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति के प्राइमरी तक पढ़े लिखे युवा 18.30 प्रतिशत हैं, जिनमें पुरुषों का अनुपात 20.81 प्रतिशत और महिलाओं का 15.54 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति के ही मिडिल और इससे उपर के युवाओं की संख्या 27.88 प्रतिशत दर्ज की गई है, जिनमें पुरुष 37.84 प्रतिशत और महिलाएं 16.94 प्रतिशत आंकी गई है। सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना 2011 के आंकड़ों में मिडिल और इसे ऊपर तक पढ़े लिखे 20 साल के युवाओं की संख्या 44.68 प्रतिशत दिखाई गई है। विकास एवं पंचायत विभाग के उच्च अधिकारियों की दलीलों से कानूनविद काफी हद तक सहमत हैं। इसके अलावा पढ़ी लिखी व्यवस्था से होने वाले फायदों को भी कलमबद्ध कर सुप्रीम कोर्ट में पेश करने की तैयारी में हैं।पंचायत चुनाव लड़ने के लिए जब दो बच्चे ही होने का कानून आया था, तब भी इसी तरह का दुष्प्रचार हुआ था कि पात्र उम्मीदवार नहीं हैं। अब भी राजनीतिक मंशा से ऐसा ही दुष्प्रचार हो रहा कि पढ़े लिखे उम्मीदवार नहीं मिलेंगे। यह सिर्फ बहानेबाजी है। राज्य में हर श्रेणी में काफी आबादी पढ़े लिखे लोगों की है। सुप्रीम कोर्ट में हम आदर्श व्यवस्था में पंचायतों की भूमिका को ध्यान में रखते हुए पैरवी करने वाले हैं। हम चाहते हैं कि व्यवस्था बदले और अच्छे रिजल्ट सामने आएं। - ओमप्रकाश धनखड़, विकास एवं पंचायत मंत्री, हरियाणा ।1सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने का सिर्फ एक ही आधार नहीं होता। सरकार के पास अपनी बात कहने के लिए कई वजनदार दलीलें होती हैं। कारण होते हैं और विजन होता है। सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपने केस की दमदार पैरवी करने को पूरी तरह से तैयार है। - बलदेव महाजन, एडवोकेट जनरल, हरियाणा।www.facebook.com/teacherharyana www.teacherharyana.blogspot.in (Recruitment , vacancy , job , news)
साफ कर दिया है। सरकार के इसी रुख को देखते हुए कानूनविद भी सुप्रीम कोर्ट का भरोसा जीतने के हरसंभव प्रयासों में जुट गए हैं।1 प्रदेश सरकार ने पंचायत चुनाव लड़ने के लिए चार शतेर्ं तय की हैं। सबसे अधिक विवाद उम्मीदवार के पांचवीं, आठवीं और दसवीं पास अनिवार्य होने पर खड़ा किया जा रहा है। सरकार को 7 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करना है। इसके लिए सरकार की अधिकारियों व कानूनविदों के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है। सरकार आदर्श गांव, ई-पंचायतें, ग्राम सचिवालय और इंटरनेट आधारित माहौल के लिए पढ़े-लिखे जनप्रतिनिधियों को आधार बनाकर अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखने की तैयारी में है। प्रदेश सरकार ने अधिकारियों को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तथा सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (एसइसीसी) 2011 के आंकड़ों का भी अवलोकन करने को कहा है। प्रदेश सरकार को लग रहा कि सामान्य श्रेणी के जितने पदों पर पंचायत चुनाव होना है, उससे 51 गुणा उम्मीदवार (दावेदार) राज्य में मौजूद हैं। अनुसूचित जाति के पदों के लिए 40 गुणा तक उम्मीदवार चिह्नित किए गए हैं। यानि याचिकाकर्ता की ओर से यदि सुप्रीम कोर्ट में उम्मीदवारों की कमी का दावा पेश किया जाता है तो कानूनविद आंकड़ों के आधार पर इसका जवाब देने की भी तैयारी में हैं। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर 2011 में दर्ज आंकड़ों के आधार पर मिडिल और उससे ऊपर 20 साल या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या 41.30 प्रतिशत है। इसमें पुरुष 33.34 प्रतिशत और महिलाओं की संख्या 28.30 प्रतिशत है। मैटिक और उससे अधिक पढ़े लिखे इसी श्रेणी के युवाओं की संख्या 34.81 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति के प्राइमरी तक पढ़े लिखे युवा 18.30 प्रतिशत हैं, जिनमें पुरुषों का अनुपात 20.81 प्रतिशत और महिलाओं का 15.54 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति के ही मिडिल और इससे उपर के युवाओं की संख्या 27.88 प्रतिशत दर्ज की गई है, जिनमें पुरुष 37.84 प्रतिशत और महिलाएं 16.94 प्रतिशत आंकी गई है। सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना 2011 के आंकड़ों में मिडिल और इसे ऊपर तक पढ़े लिखे 20 साल के युवाओं की संख्या 44.68 प्रतिशत दिखाई गई है। विकास एवं पंचायत विभाग के उच्च अधिकारियों की दलीलों से कानूनविद काफी हद तक सहमत हैं। इसके अलावा पढ़ी लिखी व्यवस्था से होने वाले फायदों को भी कलमबद्ध कर सुप्रीम कोर्ट में पेश करने की तैयारी में हैं।पंचायत चुनाव लड़ने के लिए जब दो बच्चे ही होने का कानून आया था, तब भी इसी तरह का दुष्प्रचार हुआ था कि पात्र उम्मीदवार नहीं हैं। अब भी राजनीतिक मंशा से ऐसा ही दुष्प्रचार हो रहा कि पढ़े लिखे उम्मीदवार नहीं मिलेंगे। यह सिर्फ बहानेबाजी है। राज्य में हर श्रेणी में काफी आबादी पढ़े लिखे लोगों की है। सुप्रीम कोर्ट में हम आदर्श व्यवस्था में पंचायतों की भूमिका को ध्यान में रखते हुए पैरवी करने वाले हैं। हम चाहते हैं कि व्यवस्था बदले और अच्छे रिजल्ट सामने आएं। - ओमप्रकाश धनखड़, विकास एवं पंचायत मंत्री, हरियाणा ।1सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने का सिर्फ एक ही आधार नहीं होता। सरकार के पास अपनी बात कहने के लिए कई वजनदार दलीलें होती हैं। कारण होते हैं और विजन होता है। सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपने केस की दमदार पैरवी करने को पूरी तरह से तैयार है। - बलदेव महाजन, एडवोकेट जनरल, हरियाणा।www.facebook.com/teacherharyana www.teacherharyana.blogspot.in (Recruitment , vacancy , job , news)
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