मामला बड़ी पीठ को सौंपने की जरूरत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि मामला बड़ी पीठ को सौंपने की जरूरत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि हरियाणा पंचायत चुनाव में शैक्षिक एवं अन्य योग्यताओं का मामला संविधान पीठ को सौंपने की कोई जरूरत नहीं। जस्टिस जे चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस तरह की याचिका को खारिज कर दिया। पंचायत चुनाव में विभिन्न योग्यताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हरियाणा की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी 13 अक्तूबर को जिरह करेंगे।
वरिष्ठ एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि यह मामला संवैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है, इसलिये इसे कम से कम पांच सदस्यीय बेंच के हवाले किया जाना चाहिए। उनकी दलील पर सुनवाई कर रही बेंच ने कहा ‘तुरंत हस्तक्षेप के लिये हम इसे बड़ी बेंच के हवाले नहीं करेंगे।’ बेंच, जिसमें जस्टिस एएम सप्रे भी एक सदस्य हैं, ने कहा कि इसमें न तो हरियाणा सरकार और न ही जनहित याचिका दाखिल करने वाले तीन याचिकाकर्ताओं ने एेसी कोई अपील की है। इसी तरह का एक मामला राजस्थान हाईकोर्ट में भी लंबित है।
बेंच ने दूसरे वकील संजय पारीख से भी सहमति नहीं जतायी। पारीख ने स्थानीय निकाय चुनावों के लिये विभिन्न राज्यों द्वारा अलग-अलग शर्तों को लगाये जाने पर सवाल उठाये थे। पारीख पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की ओर से जिरह कर रहे थे। इस बेंच ने टिप्पणी की, ‘यदि केरल जैसे सर्वाधिक साक्षर राज्य अपने यहां प्रत्याशियों के लिये शैक्षिक योग्यता चाहता है तो हमें इस पर कोई समस्या नहीं दिखती।’
दोनों अधिवक्ताओं जयसिंह एवं पारीख ने कहा कि हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) एक्ट 2015 संविधान में उल्लिखित लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है। चुनाव लड़ने और वोट डालने के लिये दो ही प्रतिपादित सिद्धांत हैं, एक न्यूनतम आयु और दूसरा भारतीय नागरिक होना। उन्होंने कहा कि न तो संसद और न ही राज्य विधानसभाओं के पास यह शक्ति है कि वे प्रत्याशियों के लिये शिक्षा की शर्तों को तय करे। यह मतदाता पर निर्भर करता है कि वह अपने प्रतिनिधि के तौर पर किसे चुनते हैं। पारीख ने कहा कि गांव स्तर की इकाइयों जैसे पंचायत आदि में शैक्षिक योग्यता को थोपने को कोई मतलब नहीं है। केंद्र में मंत्री और सांसद एवं विधायकों तक के लिये कोई शैक्षिक योग्यता तय नहीं है। गौर हो कि हरियाणा सरकार ने पंचायती चुनाव लड़ने के लिये शैक्षिक योग्यता सहित कुछ शर्तों को अनिवार्य कर दिया था।
वकीलों के तर्क
यह मामला संवैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है। इसे कम से कम पांच सदस्यीय पीठ के हवाले कर दिया जाना चाहिए। शिक्षा और अन्य शर्तों को थोपने का कोई मतलब नहीं है। बस दो ही चीजें जरूरी होनी चाहिए एक तो न्यूनतम आयु और दूसरा भारतीय नागरिक होना।
काेर्ट की टिप्पणी
मामले को बड़ी पीठ के हवाले करने की कोई जरूरत नहीं। इसके लिये अन्य पक्षकारों ने कोई याचिका नहीं दी है। केरल जैसा सर्वाधिक साक्षर राज्य अगर शिक्षा की अनिवार्यता की शर्त लगाता है तो इसमें कोई समस्या नहीं। ऐसा ही मामला राजस्थान हाईकोर्ट में भी लंबित है। में शैक्षिक एवं अन्य योग्यताओं का मामला संविधान पीठ को सौंपने की कोई जरूरत नहीं। जस्टिस जे चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस तरह की याचिका को खारिज कर दिया। पंचायत चुनाव में विभिन्न योग्यताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हरियाणा की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी 13 अक्तूबर को जिरह करेंगे।
वरिष्ठ एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि यह मामला संवैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है, इसलिये इसे कम से कम पांच सदस्यीय बेंच के हवाले किया जाना चाहिए। उनकी दलील पर सुनवाई कर रही बेंच ने कहा ‘तुरंत हस्तक्षेप के लिये हम इसे बड़ी बेंच के हवाले नहीं करेंगे।’ बेंच, जिसमें जस्टिस एएम सप्रे भी एक सदस्य हैं, ने कहा कि इसमें न तो हरियाणा सरकार और न ही जनहित याचिका दाखिल करने वाले तीन याचिकाकर्ताओं ने एेसी कोई अपील की है। इसी तरह का एक मामला राजस्थान हाईकोर्ट में भी लंबित है।
बेंच ने दूसरे वकील संजय पारीख से भी सहमति नहीं जतायी। पारीख ने स्थानीय निकाय चुनावों के लिये विभिन्न राज्यों द्वारा अलग-अलग शर्तों को लगाये जाने पर सवाल उठाये थे। पारीख पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की ओर से जिरह कर रहे थे। इस बेंच ने टिप्पणी की, ‘यदि केरल जैसे सर्वाधिक साक्षर राज्य अपने यहां प्रत्याशियों के लिये शैक्षिक योग्यता चाहता है तो हमें इस पर कोई समस्या नहीं दिखती।’
दोनों अधिवक्ताओं जयसिंह एवं पारीख ने कहा कि हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) एक्ट 2015 संविधान में उल्लिखित लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है। चुनाव लड़ने और वोट डालने के लिये दो ही प्रतिपादित सिद्धांत हैं, एक न्यूनतम आयु और दूसरा भारतीय नागरिक होना। उन्होंने कहा कि न तो संसद और न ही राज्य विधानसभाओं के पास यह शक्ति है कि वे प्रत्याशियों के लिये शिक्षा की शर्तों को तय करे। यह मतदाता पर निर्भर करता है कि वह अपने प्रतिनिधि के तौर पर किसे चुनते हैं। पारीख ने कहा कि गांव स्तर की इकाइयों जैसे पंचायत आदि में शैक्षिक योग्यता को थोपने को कोई मतलब नहीं है। केंद्र में मंत्री और सांसद एवं विधायकों तक के लिये कोई शैक्षिक योग्यता तय नहीं है। गौर हो कि हरियाणा सरकार ने पंचायती चुनाव लड़ने के लिये शैक्षिक योग्यता सहित कुछ शर्तों को अनिवार्य कर दिया था।
वकीलों के तर्क
यह मामला संवैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है। इसे कम से कम पांच सदस्यीय पीठ के हवाले कर दिया जाना चाहिए। शिक्षा और अन्य शर्तों को थोपने का कोई मतलब नहीं है। बस दो ही चीजें जरूरी होनी चाहिए एक तो न्यूनतम आयु और दूसरा भारतीय नागरिक होना।
काेर्ट की टिप्पणीमामले को बड़ी पीठ के हवाले करने की कोई जरूरत नहीं। इसके लिये अन्य पक्षकारों ने कोई याचिका नहीं दी है। केरल जैसा सर्वाधिक साक्षर राज्य अगर शिक्षा की अनिवार्यता की शर्त लगाता है तो इसमें कोई समस्या नहीं। ऐसा ही मामला राजस्थान हाईकोर्ट में भी लंबित है।www.facebook.com/teacherharyana www.teacherharyana.blogspot.in (Recruitment , vacancy , job , news)
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि मामला बड़ी पीठ को सौंपने की जरूरत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि हरियाणा पंचायत चुनाव में शैक्षिक एवं अन्य योग्यताओं का मामला संविधान पीठ को सौंपने की कोई जरूरत नहीं। जस्टिस जे चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस तरह की याचिका को खारिज कर दिया। पंचायत चुनाव में विभिन्न योग्यताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हरियाणा की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी 13 अक्तूबर को जिरह करेंगे।
वरिष्ठ एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि यह मामला संवैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है, इसलिये इसे कम से कम पांच सदस्यीय बेंच के हवाले किया जाना चाहिए। उनकी दलील पर सुनवाई कर रही बेंच ने कहा ‘तुरंत हस्तक्षेप के लिये हम इसे बड़ी बेंच के हवाले नहीं करेंगे।’ बेंच, जिसमें जस्टिस एएम सप्रे भी एक सदस्य हैं, ने कहा कि इसमें न तो हरियाणा सरकार और न ही जनहित याचिका दाखिल करने वाले तीन याचिकाकर्ताओं ने एेसी कोई अपील की है। इसी तरह का एक मामला राजस्थान हाईकोर्ट में भी लंबित है।
बेंच ने दूसरे वकील संजय पारीख से भी सहमति नहीं जतायी। पारीख ने स्थानीय निकाय चुनावों के लिये विभिन्न राज्यों द्वारा अलग-अलग शर्तों को लगाये जाने पर सवाल उठाये थे। पारीख पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की ओर से जिरह कर रहे थे। इस बेंच ने टिप्पणी की, ‘यदि केरल जैसे सर्वाधिक साक्षर राज्य अपने यहां प्रत्याशियों के लिये शैक्षिक योग्यता चाहता है तो हमें इस पर कोई समस्या नहीं दिखती।’
दोनों अधिवक्ताओं जयसिंह एवं पारीख ने कहा कि हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) एक्ट 2015 संविधान में उल्लिखित लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है। चुनाव लड़ने और वोट डालने के लिये दो ही प्रतिपादित सिद्धांत हैं, एक न्यूनतम आयु और दूसरा भारतीय नागरिक होना। उन्होंने कहा कि न तो संसद और न ही राज्य विधानसभाओं के पास यह शक्ति है कि वे प्रत्याशियों के लिये शिक्षा की शर्तों को तय करे। यह मतदाता पर निर्भर करता है कि वह अपने प्रतिनिधि के तौर पर किसे चुनते हैं। पारीख ने कहा कि गांव स्तर की इकाइयों जैसे पंचायत आदि में शैक्षिक योग्यता को थोपने को कोई मतलब नहीं है। केंद्र में मंत्री और सांसद एवं विधायकों तक के लिये कोई शैक्षिक योग्यता तय नहीं है। गौर हो कि हरियाणा सरकार ने पंचायती चुनाव लड़ने के लिये शैक्षिक योग्यता सहित कुछ शर्तों को अनिवार्य कर दिया था।
वकीलों के तर्क
यह मामला संवैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है। इसे कम से कम पांच सदस्यीय पीठ के हवाले कर दिया जाना चाहिए। शिक्षा और अन्य शर्तों को थोपने का कोई मतलब नहीं है। बस दो ही चीजें जरूरी होनी चाहिए एक तो न्यूनतम आयु और दूसरा भारतीय नागरिक होना।
काेर्ट की टिप्पणी
मामले को बड़ी पीठ के हवाले करने की कोई जरूरत नहीं। इसके लिये अन्य पक्षकारों ने कोई याचिका नहीं दी है। केरल जैसा सर्वाधिक साक्षर राज्य अगर शिक्षा की अनिवार्यता की शर्त लगाता है तो इसमें कोई समस्या नहीं। ऐसा ही मामला राजस्थान हाईकोर्ट में भी लंबित है। में शैक्षिक एवं अन्य योग्यताओं का मामला संविधान पीठ को सौंपने की कोई जरूरत नहीं। जस्टिस जे चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस तरह की याचिका को खारिज कर दिया। पंचायत चुनाव में विभिन्न योग्यताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हरियाणा की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी 13 अक्तूबर को जिरह करेंगे।
वरिष्ठ एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि यह मामला संवैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है, इसलिये इसे कम से कम पांच सदस्यीय बेंच के हवाले किया जाना चाहिए। उनकी दलील पर सुनवाई कर रही बेंच ने कहा ‘तुरंत हस्तक्षेप के लिये हम इसे बड़ी बेंच के हवाले नहीं करेंगे।’ बेंच, जिसमें जस्टिस एएम सप्रे भी एक सदस्य हैं, ने कहा कि इसमें न तो हरियाणा सरकार और न ही जनहित याचिका दाखिल करने वाले तीन याचिकाकर्ताओं ने एेसी कोई अपील की है। इसी तरह का एक मामला राजस्थान हाईकोर्ट में भी लंबित है।
बेंच ने दूसरे वकील संजय पारीख से भी सहमति नहीं जतायी। पारीख ने स्थानीय निकाय चुनावों के लिये विभिन्न राज्यों द्वारा अलग-अलग शर्तों को लगाये जाने पर सवाल उठाये थे। पारीख पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की ओर से जिरह कर रहे थे। इस बेंच ने टिप्पणी की, ‘यदि केरल जैसे सर्वाधिक साक्षर राज्य अपने यहां प्रत्याशियों के लिये शैक्षिक योग्यता चाहता है तो हमें इस पर कोई समस्या नहीं दिखती।’
दोनों अधिवक्ताओं जयसिंह एवं पारीख ने कहा कि हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) एक्ट 2015 संविधान में उल्लिखित लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है। चुनाव लड़ने और वोट डालने के लिये दो ही प्रतिपादित सिद्धांत हैं, एक न्यूनतम आयु और दूसरा भारतीय नागरिक होना। उन्होंने कहा कि न तो संसद और न ही राज्य विधानसभाओं के पास यह शक्ति है कि वे प्रत्याशियों के लिये शिक्षा की शर्तों को तय करे। यह मतदाता पर निर्भर करता है कि वह अपने प्रतिनिधि के तौर पर किसे चुनते हैं। पारीख ने कहा कि गांव स्तर की इकाइयों जैसे पंचायत आदि में शैक्षिक योग्यता को थोपने को कोई मतलब नहीं है। केंद्र में मंत्री और सांसद एवं विधायकों तक के लिये कोई शैक्षिक योग्यता तय नहीं है। गौर हो कि हरियाणा सरकार ने पंचायती चुनाव लड़ने के लिये शैक्षिक योग्यता सहित कुछ शर्तों को अनिवार्य कर दिया था।
वकीलों के तर्क
यह मामला संवैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है। इसे कम से कम पांच सदस्यीय पीठ के हवाले कर दिया जाना चाहिए। शिक्षा और अन्य शर्तों को थोपने का कोई मतलब नहीं है। बस दो ही चीजें जरूरी होनी चाहिए एक तो न्यूनतम आयु और दूसरा भारतीय नागरिक होना।
काेर्ट की टिप्पणीमामले को बड़ी पीठ के हवाले करने की कोई जरूरत नहीं। इसके लिये अन्य पक्षकारों ने कोई याचिका नहीं दी है। केरल जैसा सर्वाधिक साक्षर राज्य अगर शिक्षा की अनिवार्यता की शर्त लगाता है तो इसमें कोई समस्या नहीं। ऐसा ही मामला राजस्थान हाईकोर्ट में भी लंबित है।www.facebook.com/teacherharyana www.teacherharyana.blogspot.in (Recruitment , vacancy , job , news)
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