वेतन विसंगतियां सुनने से आयोग का इन्कार,बोर्ड व निगमों के सवा लाख कर्मियों की दूर नहीं होंगी शिकायतें
चंडीगढ़ : बोर्ड, निगमों और विश्वविद्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां दूर होती नजर नहीं आ रही हैं। वेतन विसंगति आयोग ने इनमें कार्यरत करीब सवा लाख कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां सुनने से इन्कार कर दिया है। पिछली हुड्डा सरकार में यह आयोग बनाया गया था और मौजूदा मनोहर सरकार ने इसे एक्सटेंशन (विस्तार) दे रखा है।अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन में छठे वेतन आयोग के बाद आई विसंगति को दूर करने के लिए सितंबर 2014 में आयोग का गठन हुआ था। जी माधवन इसके चेयरमैन हैं। आयोग को 10 मार्च तक कार्यकाल खत्म होने से पहले सरकार को रिपोर्ट देनी है। आयोग हालांकि शुरू में ही कर्मचारियों की वेतन विसंगतियों पर कुछ सुनने को तैयार नहीं था, लेकिन पिछले दिनों सर्व कर्मचारी संघ की मुख्यमंत्री से हुई बातचीत के बाद इस पर सहमति बन गई थी। संघ के महासचिव सुभाष लांबा के अनुसार बोर्ड, निगम व यूनिवर्सिटी के कर्मचारी संगठनों ने जितने प्रतिवेदन आयोग को दिए थे, उन सभी को या तो लौटा दिया गया या फिर उन्हें हटा दिया गया है। बाकी कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां दूर करने के लिए आयोग के पास करीब दो सौ प्रतिवेदन आए हैं। इनमें अधिकतर ने पंजाब के समान वेतनमान मांगा है, जबकि आयोग सिर्फ यह रिपोर्ट तैयार करने में जुटा है कि पंजाब व हरियाणा के कर्मचारियों के वेतन में कितना अंतर है। लांबा के अनुसार पंजाब व हरियाणा के कर्मचारियों के वेतन में सरकार को अंतर बताना कोई बड़ी बात नहीं है। इस अंतर के बारे में संघ की ओर से लिखित रूप से कई बार जानकारी दी जा चुकी है। आयोग यदि यह जानकारी उपलब्ध करा भी देगा तो समस्या हल नहीं होने वाली है।
इसलिए गठित हुआ था आयोग
कांग्रेस की हुड्डा सरकार में वेतन विसंगति आयोग का गठन हरियाणा सिविल सर्विसेज (रिवाइज्ड पे) नियम 2008 और हरियाणा सिविल सर्विसेज (एसीपी) नियम 2008 तथा समय-समय पर हुए संशोधनों को लागू करने से पैदा हुई वेतन विसंगतियां दूर करने के लिए हुआ था। आयोग को कर्मचारियों के व्यक्तिगत/ एसोसिएशन और यूनियन के प्रतिवेदनों को लेने और उन पर विचार करने के साथ ही अपनी सिफारिश देने को कहा गया है।
Click news about 7th pay commission
No comments:
Post a Comment
thanks for your valuable comment