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रंग-बिरंगी होली आई
... ...
ओअली आई, सओली आई
... रंग-बिरंगी होली आई

कोय मारै रंग, कोय मारै गुब्बारा
कोय मारै गोबर, कोय मारै गॉरा

मेरे भी खेलण की उठी खुमारी
मैं भी ठा लाया एक पुरानी पिचकारी

आच्छा-सा घोल त्यार करया
पिचकारी मैं रंग भरया

दूर तैं चॉली आवै एक छोरी
लागै थी सुथरी शक्ल की गोरी

लहरावैं थे लाम्बे बॉल
गज़ब की थीं उसकी चाल

मन्नै पिचकारी दबाई
पर रंग की फुहार ना आई

मैं बोल्या, पिचकारी, तेरे के सै बीमारी
चालती क्यूँ ना, रंग डालती क्यूँ ना

पिचकारी बोली-कोन्या चालूँ
तरे घी-सा कोन्या घालूँ

मैं बोल्या, चॉल पड़, क्यूं होली का मौका ख़ोरी
फागण मैं ऐकली कित पावैगी इसी गोरी

पिचकारी बोली, तूँ निपट सै कोरा
ध्यान तै देख, छोरी कोन्या, यू सै छोरा

किसी चॉल्ली फ़ैशन की बीमारी
साच कह री सै तूं पिचकारी

मन्नै सांस सब्र का घाल्या
पिचकारी नैं ले कै आगै चाल्या

फेर देख्या एक जोड़ा चाल्या आवै
चूपचाप थे दोनूँ, ना आपस में बतलावै

मै बोल्या, इनके मारूँ, होली का खुमर तारूँ

पिचकारी बोली, रहण दे
इन दोनुआ नै जाण दे

मैं बोल्या, क्यूं, के फांसी आगी
पिचकारी नै हांसी आगी

न्यू बोली, इन्न पैं तू के रंग चढ़ावैगा
इनकी करणी सुण के दुखी हो जावैगा

ये आये सैं भविष्य के रंग मिटा कै,
रामू डॉक्टर धोरै दोनूँ जाकै

छोरा-छोरी का पता लगा कै
अजन्मी कन्या नै कोख़ तैं हटा है

ना सोची इनैं कुछ भी समाज़ की
किसी पीढ़ी से या आज की

कित तैं आवैंगी बहू, जै जन्मैंगी ना छोरी
बिना रंगा के रहैगी होली, फागण की या मस्ती कोरी

मैं बोल्या, पिचकारी, तू के घर घॉलैगी
बता तो दे, तू किते चालैगी, के ना चॉलैगी

पिचकारी बोली, मैं चालूँगी,
रंगा तैं घर भर डालूँगी

जिस दिन हर तरफ़ हो ज्यागी ईमानदारी
बेटा अर बेटी सबनैं लागैंगी एक-सी प्यारी

छोटे बड़े का मान होगा, ना होगी किते तब लाचारी
खुशियाँ के रंग बरसावैगी, म्हारे संस्काराँ की पिचकारी

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