पिहोवा,25 बच्चों से कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद करने का शिक्षा विभाग का फरमान किसी के गले नहीं उतर रहा है। कस्बे के केवल दो स्कूलों को छात्र संख्या कम होने के कारण एक किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाले दूसरे स्कूलों में मर्ज किया गया है। हालाकि विभागीय तौर पर बंद किए गए स्कूलों को ऐसा कोई पत्र अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। इसके बावजूद कस्बे में कई प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं जहा छात्र संख्या अपेक्षा से कम हैं। सवाल उठता है कि उन स्कूलों की ओर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? क्या विभाग का सर्वे केवल कागजों में हुआ? अथवा विभाग जानबूझ कर गलती कर रहा है।
बता दें कि विभाग ने प्रदेश के उन सभी प्राइमरी स्कूलों को बंद करने की योजना बनाई थी जहा छात्र संख्या 25 से कम है। बाकायदा जिला मुख्यालय की ओर से खंड स्तर पर अधिकारियों को ऐसे स्कूलों की लिस्ट बनाकर भेजने के आदेश दिए थे। कस्बे में लगभग 17 ऐसे स्कूलों की पहचान कर विभाग को रिपोर्ट भेजी गई थी। जिनमें जुलमत, टयूकर, भाना प्लाट, चंड़ीगढ फार्म, सैनी फार्म, डेरा चंदनपुरा, डेरा संतोख सिंह, मागना प्लाट, सिंहपुरा, टकोरन, बचकी, सूरजगढ, कूपिया प्लाट, डेरा भगतपुरा, पटेल नगर, नानकपुरा, शेरगढ आदि प्राइमरी स्कूल शामिल थे।
दैनिक जागरण ने लगभग चार माह पूर्व इस समाचार को 'तो बंद हो सकते हैं 70 प्राइमरी स्कूल' नामक शीर्षक से प्रकाशित किया था। लेकिन अधिकतर ऐसे स्कूलों को छोड़ दिया गया है जहा छात्र संख्या न के बराबर है और दूसरे बड़े स्कूल भी उन स्कूलों के एक किमी के दायरे में पड़ते है।
63 बच्चों पर एक अध्यापक
छैलों स्कूल में कार्यरत अध्यापक किरणपाल ने बताया कि उनके स्कूल में तिरसठ बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इन्हे संभालने का काम अकेले उनके जिम्मे है। विभाग ने अगस्त माह में टकोरन स्कूल के अध्यापक रजत नरूला को छैलों स्कूल में डेपुटेशन पर भेज कर उनका बोझ कुछ कम कर दिया था लेकिन दिसंबर माह में उस अध्यापक का डेपुटेशन रद कर वापिस टकोरन भेज दिया। ऐसे में पाच कक्षाओं के तिरसठ बच्चों को वे अकेले पढ़ा रहे हैं।
बता दें कि विभाग ने प्रदेश के उन सभी प्राइमरी स्कूलों को बंद करने की योजना बनाई थी जहा छात्र संख्या 25 से कम है। बाकायदा जिला मुख्यालय की ओर से खंड स्तर पर अधिकारियों को ऐसे स्कूलों की लिस्ट बनाकर भेजने के आदेश दिए थे। कस्बे में लगभग 17 ऐसे स्कूलों की पहचान कर विभाग को रिपोर्ट भेजी गई थी। जिनमें जुलमत, टयूकर, भाना प्लाट, चंड़ीगढ फार्म, सैनी फार्म, डेरा चंदनपुरा, डेरा संतोख सिंह, मागना प्लाट, सिंहपुरा, टकोरन, बचकी, सूरजगढ, कूपिया प्लाट, डेरा भगतपुरा, पटेल नगर, नानकपुरा, शेरगढ आदि प्राइमरी स्कूल शामिल थे।
दैनिक जागरण ने लगभग चार माह पूर्व इस समाचार को 'तो बंद हो सकते हैं 70 प्राइमरी स्कूल' नामक शीर्षक से प्रकाशित किया था। लेकिन अधिकतर ऐसे स्कूलों को छोड़ दिया गया है जहा छात्र संख्या न के बराबर है और दूसरे बड़े स्कूल भी उन स्कूलों के एक किमी के दायरे में पड़ते है।
दो स्कूलों में छात्र संख्या पाच से भी कम
विभाग द्वारा मर्ज किए गए स्कूलों में सैनी फार्म व पटेल नगर शामिल है। लेकिन एक एकड़ में बने डेरा चंदनपुरा स्कूल में सिर्फ पाच बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जबकि साथ लगते टकोरन प्राइमरी स्कूल में भी केवल पाच बच्चे पंजीकृत हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि विभाग ने इन दो स्कूलों को मर्ज क्यों नहीं किया। डेरा चंदनपुरा स्कूल में एक अध्यापक कार्यरत हैं तथा एक अध्यापिका पंचायत की ओर से स्कूल में बच्चे पढ़ाने के लिए लगाई गई है जिसे सरकारी अध्यापक अपनी जेब से मेहनताना देते हैं। इसकी वजह बताते हुए अध्यापक प्रवीण शर्मा ने बताया कि स्कूल के शिक्षण संबंधित कार्य के अलावा अन्य कार्यो के लिए उन्हे अक्सर स्कूल से बाहर बैंक आदि जाना पड़ता है ऐसे में स्कूल तो बंद नहीं किया जा सकता इसलिए वैकल्पिक अध्यापिका की व्यवस्था करनी पड़ रही है। वहीं शिक्षा विभाग की कारगुजारी देखिये कि टकोरन स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे मात्र पाच बच्चों पर दो अध्यापक लगाए गए हैं। चंदनपुरा स्कूल के एकमात्र शिक्षक कुरूक्षेत्र से व टकोरन स्कूल के दोनों शिक्षक हिसार से हैं ऐसे में शिक्षा विभाग बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों से भी बेइसाफी कर रहा है।63 बच्चों पर एक अध्यापक
छैलों स्कूल में कार्यरत अध्यापक किरणपाल ने बताया कि उनके स्कूल में तिरसठ बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इन्हे संभालने का काम अकेले उनके जिम्मे है। विभाग ने अगस्त माह में टकोरन स्कूल के अध्यापक रजत नरूला को छैलों स्कूल में डेपुटेशन पर भेज कर उनका बोझ कुछ कम कर दिया था लेकिन दिसंबर माह में उस अध्यापक का डेपुटेशन रद कर वापिस टकोरन भेज दिया। ऐसे में पाच कक्षाओं के तिरसठ बच्चों को वे अकेले पढ़ा रहे हैं।
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