शिक्षक दिवस की सार्थकता


हर साल की तरह आज फिर अध्यापकों को सम्मानित होने का अवसर मिलेगा। नेताओं के जगह-जगह भाषण होंगे- हमारे अध्यापक देश के भविष्य निर्माता हैं, उनका स्थान ‘गोविंद’ यानी भगवान से पहले आता है..आदि आदि। यह लगभग तय है कि नया कुछ नहीं होगा। अध्यापकों की स्थिति में परिवर्तन लाने वाली किसी नीति या कार्यक्रम की घोषणा की भी अपेक्षा नहीं है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अध्यापकों के सात लाख पद खाली हैं। लगभग इतने ही पदों पर अप्रशिक्षित शिक्षक काम कर रहे हैं, जिन्हें नाममात्र का मानदेय मिलता है। इन्हीं से स्कूल चलाने का अपेक्षा की जाती है। पर सवाल उठता है कि जो व्यक्ति नियमित आय का साधन नहीं जुटा पाता वह अपना कार्य पूरी क्षमता के साथ कैसे कर सकता है? मानदेय प्राप्त अध्यापक जब यह देखता है कि उससे कई गुना अधिक वेतन तथा अनेक सुविधाएं प्राप्त नियमित अध्यापक से भी उसके बराबर ही उत्तरदायित्व निभाने की अपेक्षा है, तब उसका उद्वेलित होना स्वाभाविक है। इस श्रेणी के अध्यापक नियमितीकरण के लिए प्रदर्शन करते हैं, पुलिस उन पर लाठियां बरसाती है, सामान्य जन इसे टीवी पर देखते हैं और जानते हैं कि कुछ दिन बाद यह सब फिर दिखाया जाएगा। सभ्य तथा शिक्षित समाज के लिए शर्मनाक इस प्रकार की घटनाओं का अब सामान्यीकरण हो गया है। लगता है किसी को शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था की जरा भी चिंता नहीं है। हो भी क्यों? जो प्रभाव डाल सकते हैं, नीति परिवर्तन कर सकते हैं या जो उसका क्रियान्वयन कर सकते हैं, उनके बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं, जहां तमाम सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। 1जो नौकरशाही अपनी सेवा-शतोर्ं, स्थायित्व, वेतन तथा पेंशन की व्यवस्था में लगातार सुधार करती है, वही स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में स्थायी तौर पर अस्थायी शिक्षकों से काम निकालना चाहती है। केंद्र सरकार की नाक के नीचे देश के नामी-गिरामी दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग 50 प्रतिशत ही नियमित अध्यापक हैं। बाकी काम अतिथि अध्यापकों तथा अस्थायी अध्यापकों की व्यवस्था से चल रहा है। अब यह कौन तय करे कि प्राथमिकता चार-वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम को आनन-फानन में लागू करने की होनी चाहिए या अध्यापकों के रिक्त पद भरने की। अध्यापकों की दयनीय स्थिति का अनुमान इस अध्ययन से लगाया जा सकता है कि इस श्रेणी के 40 प्रतिशत अध्यापक तब तक शादी नहीं करना चाहते जब तक उनका नियमितीकरण न हो जाए।15 सितंबर को डॉ. राधाकृष्णन को याद किया जाता है। शिक्षकों से उनके आदर्शो पर चलने की अपेक्षा की जाती है। डॉ. राधाकृष्णन जीवनर्पयत अध्ययनशीलता तथा ज्ञानोदय के पर्याय रहे। भारत की संविधान सभा में उन्होंने एक बार कहा था कि जब सत्ता तथा अधिकार व्यक्तियों की योग्यता से बड़े हो जाएंगे, तब बुरा वक्त शुरू हो जाएगा। आज ऊंचे पदों पर अयोग्य व्यक्तियों के पहुंचने के कारण ही राष्ट्र निर्माण तथा भारत के भविष्य की दीर्घकालीन सोच की कमी हर तरफ नजर आ रही है। जो लोग जाति, संप्रदाय, क्षेत्रीयता की राजनीति कर सत्ता प्राप्त करते हैं, वे योग्यता तथा सिद्धांत को महत्व कैसे दे पाएंगे? यही कारण है कि आज सरकारी स्कूल तथा उनके अध्यापकों की समाज में स्वीकार्यता निचले स्तर पर है। डॉ. राधाकृष्णन मूलत: अध्यापक थे। वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर रहते हुए रविवार को गीता पर प्रवचन देते थे। आज भी उन प्रवचनों को याद किया जाता है। उनका मानना था कि बौद्धिक कार्य हर व्यक्ति के लिए उपयुक्त नहीं होता। अर्थात अध्ययन, अध्यापन, शोध, वैज्ञानिक नवाचार जैसे क्षेत्र उन्हीं के लिए उपयुक्त हैं जो इनमें रुचि रखते हैं। 1पिछले दस वषों में सरकार ने आर्थिक प्रगति के जो हवाई किले बनाए थे, वे अब ढहने लगे हैं। ऐसी किसी भी विकट परिस्थिति का समाधान देश की बौद्धिक संपदा बढ़ा कर ही निकलता है। इसका सृदृढ़ आधार देश के अध्यापकों की निष्ठा, कर्मठता, सजगता तथा व्यावसायिक क्षमता से निर्मित होता हैं। उच्च शिक्षा इसे संपूर्णता तथा सर्वागीणता प्रदान करती है। यह तभी हो सकता है जब हर स्तर का अध्यापक अपने अंत:करण से खुद को राष्ट्र निर्माता माने तथा अध्यापक होने में गौरव का अनुभव करे। ऐसी स्थिति राजसत्ता तथा समाज व्यवस्था द्वारा ही निर्मित की जा सकती है।1शिक्षक दिवस पर देश के समक्ष अहम सवाल उठता है कि वर्तमान शिक्षा न तो भारत की बौद्धिक संपदा को बढ़ा पा रही है और न ही आध्यात्मिक श्रेष्ठता को स्थापित कर रही है। उस शिक्षा का कोई महत्व नहीं है जो उत्तीर्णता प्रमाण पत्र तो दे मगर अपेक्षित ज्ञान, कौशल तथा मानवीय मूल्यों से व्यक्ति को समृद्ध न कर सके। शिक्षा नीतियां सतत पुनरावलोकन चाहती हैं। समय के अनुरूप बदलाव चाहती हैं। देश हित में इन्हें राजनीति से हर स्तर पर छुटकारा चाहिए। अध्यापकों की इसमें अपेक्षित भूमिका तभी होगी जब सरकारी व्यवस्था अपने अधिकारों के उपयोग, दुरुपयोग के स्थान पर सहयोग तथा सहायता देने का उत्तरदायित्व निभाए। साथ ही आवश्यक भौतिक और मानवीय संसाधन प्रदान करना अपना मुख्य कार्य माने। आज के अध्यापकों को प्रशंसा, पुरस्कार और प्रमाणपत्रों से अधिक जरूरत है कार्य करने के लिए उपयुक्त वातावरण तथा असुरक्षा से मुक्ति की! यदि व्यवस्था इस दिशा में दृढ़ता से बढ़े तभी सार्थक होगा शिक्षक दिवस का आयोजन एवं उपलब्धियों की वस्तुनिष्ठ समीक्षा।1(लेखक एनसीइआरटी के पूर्व निदेशक हैं)11ी2स्रल्ल2ीAं¬1ंल्ल.ङ्घे

प्रेरणास्नेत 16भारत की संविधान सभा में डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था कि जब सत्ता और अधिकार व्यक्तियों की योग्यता से बड़े हो जाएंगे, तब बुरा वक्त शुरू हो जाएगा 16


Click here to enlarge imageClick here to enlarge image


imageviewwww.teacherharyana.blogspot.com (Recruitment , vacancy , job , news)

No comments:

Post a Comment

thanks for your valuable comment

See Also

Education News Haryana topic wise detail.