कब आएंगे अच्छे दिन
शिक्षा क्षेत्र के अच्छे दिन कब आएंगे? शायद सरकार बताने की स्थिति में नहीं। व्यवस्था हर दिन खराब हो रही है। हाल ही में जो कवायद आरंभ हुई उसका असर देखने के लिए अभी इंतजार करना होगा, तो क्या तब तक शैक्षणिक आधार इसी तरह
छिन्न-भिन्न होता रहेगा? कैथल जिले के तीन मिडिल स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं, वाह री व्यवस्था, वहां ज्ञान बांटने का काम चपरासी व क्लर्को से करवाया जा रहा है। एकाध उधार का शिक्षक पड़ोसी गांव के स्कूल से बुलवा कर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि सब कुछ सामान्य है, पाठ्यक्रम समय पर पूरा करवा दिया जाएगा। शिक्षा क्षेत्र का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि 122 बच्चों के स्कूल में केवल एक चपरासी , 183 बच्चों वाले स्कूल में एक-एक चपरासी और क्लर्क है। एक अन्य राजकीय विद्यालय में मुख्याध्यापक व एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है। मुख्याध्यापक कागजी कामों में मशगूल रहते हैं और स्वाभाविक है कि शिक्षण का दायित्व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही निभाने की औपचारिकता पूरी कर रहा है। आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि वहां शिक्षा का स्तर कैसा होगा, भविष्य की प्रतिस्पर्धा के लिए बच्चे कैसे अपना आधार मजबूत बना रहे होंगे? ऐसी स्थिति केवल कैथल के गांवों की नहीं, अन्य 20 जिलों में इस समय दर्जनों ऐसे स्कूल हैं जहां स्कूल भवन तो हैं, उनका निरीक्षण करने के लिए मौलिक व जिला शिक्षा अधिकारी भी हैं, बस अध्यापक ही नहीं। सवाल है कि अध्यापक नहीं तो भवन को विद्यालय कैसे माना जाए? क्या मिड डे मील देने के लिए बच्चों को बुलाया जाता है? सैकड़ों सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनमें दो से चार अध्यापक शिक्षण कार्य का बोझ ढो रहे हैं। शिक्षकों की अस्थायी व्यवस्था के नाम पर जो कुछ हो रहा है वह और भी शर्मनाक है। लगता है अध्यापक विभाग के आदेश को तवज्जो ही नहीं देते। पड़ोसी स्कूल से आए शिक्षक सप्ताह में एकाध पीरियड ले भी लेते हैं तो क्या उससे कोई लाभ होने वाला है? सरकार को यह तथ्य स्वीकार करना होगा कि साढ़े तीन हजार गेस्ट टीचरों की सेवाएं समाप्त करने के बाद की स्थिति का अनुमान लगाने में शिक्षा विभाग पूरी तरह विफल रहा। अध्यापक न होने से बच्चे छुट्टी के आदी हो रहे हैं, पढ़ाई उनकी दिनचर्या से दूर होती जा रही है। अस्थायी व्यवस्था को प्रभावशाली ढंग से लागू करने के लिए युद्धस्तर पर अभियान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए।
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शिक्षा क्षेत्र के अच्छे दिन कब आएंगे? शायद सरकार बताने की स्थिति में नहीं। व्यवस्था हर दिन खराब हो रही है। हाल ही में जो कवायद आरंभ हुई उसका असर देखने के लिए अभी इंतजार करना होगा, तो क्या तब तक शैक्षणिक आधार इसी तरह
छिन्न-भिन्न होता रहेगा? कैथल जिले के तीन मिडिल स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं, वाह री व्यवस्था, वहां ज्ञान बांटने का काम चपरासी व क्लर्को से करवाया जा रहा है। एकाध उधार का शिक्षक पड़ोसी गांव के स्कूल से बुलवा कर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि सब कुछ सामान्य है, पाठ्यक्रम समय पर पूरा करवा दिया जाएगा। शिक्षा क्षेत्र का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि 122 बच्चों के स्कूल में केवल एक चपरासी , 183 बच्चों वाले स्कूल में एक-एक चपरासी और क्लर्क है। एक अन्य राजकीय विद्यालय में मुख्याध्यापक व एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है। मुख्याध्यापक कागजी कामों में मशगूल रहते हैं और स्वाभाविक है कि शिक्षण का दायित्व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही निभाने की औपचारिकता पूरी कर रहा है। आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि वहां शिक्षा का स्तर कैसा होगा, भविष्य की प्रतिस्पर्धा के लिए बच्चे कैसे अपना आधार मजबूत बना रहे होंगे? ऐसी स्थिति केवल कैथल के गांवों की नहीं, अन्य 20 जिलों में इस समय दर्जनों ऐसे स्कूल हैं जहां स्कूल भवन तो हैं, उनका निरीक्षण करने के लिए मौलिक व जिला शिक्षा अधिकारी भी हैं, बस अध्यापक ही नहीं। सवाल है कि अध्यापक नहीं तो भवन को विद्यालय कैसे माना जाए? क्या मिड डे मील देने के लिए बच्चों को बुलाया जाता है? सैकड़ों सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनमें दो से चार अध्यापक शिक्षण कार्य का बोझ ढो रहे हैं। शिक्षकों की अस्थायी व्यवस्था के नाम पर जो कुछ हो रहा है वह और भी शर्मनाक है। लगता है अध्यापक विभाग के आदेश को तवज्जो ही नहीं देते। पड़ोसी स्कूल से आए शिक्षक सप्ताह में एकाध पीरियड ले भी लेते हैं तो क्या उससे कोई लाभ होने वाला है? सरकार को यह तथ्य स्वीकार करना होगा कि साढ़े तीन हजार गेस्ट टीचरों की सेवाएं समाप्त करने के बाद की स्थिति का अनुमान लगाने में शिक्षा विभाग पूरी तरह विफल रहा। अध्यापक न होने से बच्चे छुट्टी के आदी हो रहे हैं, पढ़ाई उनकी दिनचर्या से दूर होती जा रही है। अस्थायी व्यवस्था को प्रभावशाली ढंग से लागू करने के लिए युद्धस्तर पर अभियान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए।
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