सरकार के लिए इससे बड़ी शर्मिंदगी की बात भला और क्या हो सकती है कि उसके द्वारा की गई राज्य लोकसेवा आयोग के चेयरमैन की नियुक्ति को, जो कि एक सांविधानिक पद होता है, उच्च न्यायालय अवैध बताए! उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को यूपीपीएससी के विवादास्पद चेयरमैन को हटाना पड़ा है, तो उसकी वजह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तेवर और उसकी व्यवस्था ही है। अन्यथा सरकार तो शुरू से उनका बचाव ही कर रही थी। कोई सरकार इतनी महत्वपूर्ण जगह में भी योग्यता को हाशिये पर रखकर सिर्फ जातिवाद को किस तरह तरजीह देती है, करीब ढाई साल पहले यूपीपीएससी के चेयरमैन पद पर अनिल यादव की नियुक्ति इसका शर्मनाक उदाहरण थी। इस पद के लिए अस्सी से अधिक आवेदक थे, जिनमें रीडर और प्रोफेसर से लेकर आईएएस अधिकारी तक थे, पर मैनपुरी के इस प्राध्यापक को उन सब पर तरजीह दी गई, क्योंकि वह मुलायम सिंह यादव के नजदीकी बताए जाते हैं। अनिल यादव के खिलाफ एकाधिक आपराधिक मामले थे, जिनमें जानलेवा हमला करने का मामला भी था, लेकिन न सिर्फ नियुक्ति के समय इन रिपोर्टों को देखा तक नहीं गया, बल्कि मैनपुरी के डीएम ने जिस तरह रविवार होने के बावजूद उसी दिन अनिल यादव का चरित्र प्रमाणपत्र सरकार को भिजवाया था, वह सत्ता से अनिल यादव की नजदीकी बताने के लिए काफी था। अयोग्य व्यक्ति एक संस्था को किस तरह ध्वस्त कर देता है, अनिल यादव का कार्यकाल इसका सुबूत है। इस दौरान उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग विवादों का पर्याय ही बन गया था। खुद उन पर तो पक्षपात करने और कुछ खास क्षेत्र के लोगों को तरजीह देने के आरोप लगे ही, पीसीएस, 2012 की उत्तर पुस्तिकाएं नष्ट करने, और अंतिम परिणाम में चयनित अभ्यर्थियों के नाम न देने जैसे कई विवादास्पद फैसले उनके कार्यकाल में लिए गए। यही नहीं, विगत मार्च में पीसीएस का प्रश्नपत्र तक लीक हुआ। न्यायिक हस्तक्षेप के बाद अखिलेश सरकार ने उन्हें हटा तो दिया है, पर सवाल यह है कि इस दौरान जो अभ्यर्थी अन्याय का शिकार हुए, उन्हें न्याय कैसे मिलेगा, और राज्य लोकसेवा आयोग की छवि जिस तरह खराब हुई, उसकी भरपाई कैसे होगी।न्यायिक हस्तक्षेप के बाद अखिलेश सरकार ने अनिल यादव को हटा तो दिया है, पर सवाल यह है कि क्या इससे राज्य लोकसेवा आयोग की खराब हो चुकी छवि की भरपाई होगी।www.facebook.com/teacherharyana
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