पढ़ाई-लिखाई का बदलेगा दशकों पुराना ढर्रा

नई दिल्ली : केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों में पढ़ाई-लिखाई का दशकों पुराना ढर्रा बदलेगा। वे सिर्फ ग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट बनाने की फैक्ट्री के रूप में काम नहीं करेंगे। जरूरत के लिहाज से उच्च शिक्षा में वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हें उत्कृष्टता केंद्र (सेंटर फॉर एक्सीलेंस) बनाने का सपना है। लिहाजा सबसे पहले विश्वविद्यालयों पर सैकड़ों कॉलेजों की संबद्धता का बोझ कम किया जाएगा। जबकि यूजीसी के मानकों की कसौटी पर खरे उतरने वाले कॉलेजों को राज्य विश्वविद्यालय में तब्दील कर दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक उच्च शिक्षा में सुधार की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की पहलकदमियों में से एक विश्वविद्यालयों से कॉलेजों की संबद्धता को खत्म करना भी है। यह 12वीं पंचवर्षीय योजना के उसके एजेंडे में शामिल है। आयोग का मानना है कि जिन विश्वविद्यालयों में अच्छी पढ़ाई-लिखाई व शोध की संभावनाएं हैं, वे भी कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। वे कॉलेजों की संबद्धता के बोझ से दबे हैं। मसलन हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से लगभग एक हजार से भी अधिक कालेज संबद्ध हैं। जबकि बाकी अनेक विश्वविद्यालयों पर सौ से लेकर छह-सात सौ कालेजों की संबद्धता का बोझ है। यूजीसी के कार्यवाहक चेयरमैन प्रो. वेदप्रकाश के मुताबिक विश्वविद्यालयों से कालेजों की संबद्धता चरणबद्ध तरीके से खत्म की जा सकती है। उसके लिए विश्वविद्यालय बनने की कसौटी पर खरे उतरने वाले संबद्ध कॉलजों को राज्य विश्वविद्यालय में तब्दील किया जा सकता है। मसलन शिक्षकों, छात्रों, कैंपस और संसाधनों के मामले में वे एक न्यूनतम निश्चित आधार (क्रिटिकल मास) को पूरा करते हों। ऐसे कॉलेजों के रूप में यूजीसी की ओर से चिन्हित कॉलेज, स्वायत्तशासी कॉलेज, राष्ट्रीय मूल्यांकन व मान्यता परिषद (नैक) की सूची में शामिल कालेजों की समीक्षा की जा सकती है। उम्मीद है कि उनमें से लगभग 500 कॉलेज राज्य विश्वविद्यालय बनाने के मापदंडों पर खरे उतर सकते हैं। जाहिर है इससे संबद्धता देने वाले विश्वविद्यालयों का बोझ कम होगा।

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