जयपुर.द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा में मोबाइल के ब्लूटूथ ईयर फोन से नकल कराने वाले गिरोह के पकड़ में आने व पर्चा बाजार में पहुंचने के बाद भी आरपीएससी इस पेपर को आउट नहीं मान रहा। आयोग का कहना है कि परीक्षा केंद्रों पर पेपर खुलने के बाद बाहर आने के मामले सामने आए हैं, जिसे नकल की श्रेणी में ही माना जाएगा। पेपर आउट तब माना जाता है, जब केंद्रों पर खुलने से पहले ही पेपर बाजार में बिकने लग जाएं।
एक ही सेंटर से क्यों पास होते हैं दर्जनों अभ्यर्थी?
आरपीएससी व अन्य परीक्षाओं में सामने आया कि झुंझुनूं, सीकर, धौलपुर व जयपुर आदि जिलों के इक्के-दुक्के सेंटरों से सभी अभ्यर्थी पास हो जाते हैं। जांच एजेंसियों का कहना है कि ब्लू टूथ व अन्य तरीकों से नकल कराने वाले गिरोह द्वारा पूरे सेंटर को ही खरीद लिए जाने से यह धांधली होती है। आरपीएससी सचिव का कहना है कि पिछली परीक्षा में भी दो केस ऐसे आए थे, जिनमें एक-एक सेंटर से ज्यादा अभ्यर्थी पास हुए थे।
इन केंद्रों के अभ्यर्थियों के परिणाम रोक कर जांच की गई। इस बार भी परिणाम के समय यदि किसी सेंटर से 80 फीसदी से ज्यादा परीक्षार्थियों के पास होने की बात सामने आई तो जांच की जाएगी।
सभी परीक्षाओं के बाद कोई निर्णय :
ब्लू टूथ ईयरफोन से नकल कराने वाले गिरोह द्वारा पेपर बाहर लाने या अन्य तरीकों से नकल के गुरुवार शाम तक जयपुर, सिरोही व बाड़मेर जिलों में पांच मामले सामने आए। गुरुवार के आंकड़े अभी नहीं मिले हैं। फिलहाल पेपर आउट नहीं मान रहे।
जिन जिलों में पुलिस या एसओजी द्वारा पकड़े गए मामलों में अगर यह सिद्ध होता है कि पेपर आउट हुआ था तो सभी परीक्षाओं के बाद आयोग स्तर पर कोई निर्णय किया जाएगा। हमने भी इस बार नकल रोकने व पेपर के बाहर जाने पर रोकथाम के लिए हर चार कमरों पर एक विजिटिंग परीक्षक लगाया है। आयोग के 2 अधिकारियों के नंबर सार्वजनिक किए हैं, जिन पर शिकायत आते ही संबंधित सेंटर समन्वयक से तत्काल कार्रवाई कराई जा सके।
केके पाठक, सचिव, आरपीएससी
फैक्ट फाइल
दो पेपर के साथ परीक्षा देने वाले : करीब 1.6 लाख
एक पेपर वाले अभ्यर्थी : करीब 4.5 लाख
पहले पेपर के लिए परीक्षा केंद्र: करीब 2 हजार
दूसरे पेपर के लिए प्रदेशभर में परीक्षा केंद्र: करीब 1200
ऐसे आउट माना जाता है पेपर
यदि किसी परीक्षा के दौरान पेपर की हू-ब-हू कॉपी किसी भी माध्यम से सेंटर से बाहर आ जाए व लोग उसका उपयोग कर लें तो पेपर आउट माना जाता है। इसके अलावा सेंटर पर पेपर खोले जाने से पांच मिनट पहले या पांच मिनट बाद तक भी यदि पेपर बाहर आ जाए तो पेपर आउट माना जाता है।
सील खोले जाने के पांच की जगह 15 मिनट तक भी बाहर आना आउट की श्रेणी में आ सकता है। लेकिन ज्यादा शातिर सेंटर संचालक रात को ही सील खोल पेपर आउट कर देते हैं और फिर सील लगाकर सुबह पेपर के समय कुछ कहानी गढ़ कर मामले को बाजार में किसी गिरोह द्वारा आउट करना बता देते हैं।
एसडी कारीगर,
पूर्व सहायक रजिस्ट्रार, राजस्थान यूनिवर्सिटी
पेपर, परीक्षार्थी, वीक्षक तीनों डमी, फिर होती है असली नकल
ब्लू टूथ से नकल के मामले में भास्कर टीम द्वारा की गई पड़ताल में सामने आया है कि एक गिरोह प्रत्येक छात्र से करीब पांच लाख रु. तक लेकर नकल करा रहा है। नकल कराने के तरीका अजीबो-गरीब हैं। गिरोह के सदस्य प्रश्न-पत्र, परीक्षार्थी और वीक्षक तक को डमी के रूप में इस्तेमाल करके अलग-अलग परीक्षा केंद्रों पर बैठे अभ्यर्थियों को सामूहिक नकल कराते हैं।
विभिन्न परीक्षाओं में पकड़ में आए ऐसे सात गिरोहों की पुष्टि पुलिस भी कर चुकी है। ये गिरोह प्रत्येक परीक्षा में 100 से 150 छात्रों से जुड़कर पांच करोड़ रु. से अधिक की डील करते हैं।
यूं होती है नकल
1. चूंकि ऑनलाइन आवेदन में सर्टिफिकेट संलग्न नहीं होता, इसलिए गिरोह के कुछ सदस्य बतौर डमी अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल होते हैं। इनका काम केवल गिरोह से जुड़े कैंडिटेड की मदद करना होता है। इसी तरह प्राइवेट स्कूलों द्वारा बिना जांच पड़ताल रखे जाने वाले वीक्षक के रूप में भी गिरोह के सहयोगी क्लास रूम तक आसानी से पहुंच जाते हैं। डमी अभ्यर्थी अपने साथ पुराना प्रश्नपत्र भी लाते हैं और नया पेपर मिलते ही अपने टेबल पर पुराना प्रश्नपत्र रखकर नया पेपर डमी वीक्षक को दे देते हैं।
चूंकि वीक्षक स्कूल में घूम सकता है, इसलिए वो इस पेपर को आसानी से स्कूल के दीवार के बाहर मुस्तैद गिरोह के सदस्य तक पहुंचा देता है। ठीक दस मिनट बाद ही वापस वो पेपर उसी तरह अभ्यर्थी तक पहुंच जाता है।
2. किसी स्कूल में विशेष सख्ती पर गिरोह विकल्प भी तैयार रखता है। ऐसे में डमी वीक्षक अपने पास मोबाइल (जो गिरोह द्वारा उपलब्ध कराया जाता है) से प्रश्न पत्र की फोटो लेकर गिरोह के सदस्यों को एमएमएस भेज देते हंै। जयपुर और जोधपुर सहित प्रदेशभर में इस तरह से नकल का तरीका अपनाया जाता है।
3. नकल का खास जरिया है एक माइक्रो ब्लू टूथ (साइज में बहुत छोटा होता है), जो शर्ट की कॉलर, बांह, कान के आभूषण, मफलर, घड़ी में लग जाता है। इसका संबंध कान के अंदर लगे एक इयर फोन से होता है। ये पेन की नोक जितना छोटा है और कान में लगने के बाद आसानी से दिखाई नहीं पड़ता है।
इस फोन और ब्लू टूथ की कीमत 15000 से 30000 के बीच है। एक किमी तक की दूरी पर रखे मोबाइल से यह ब्लू टूथ कनेक्ट रहता है। अगर परीक्षा कक्ष के बाहर मोबाइल रखा है तो कक्षा के अंदर बैठकर इस ब्लू टूथ के माध्यम से बात हो सकती है। इस तरह से कक्षा में बैठा परीक्षार्थी गिरोह के सदस्यों या गिरोह के कंट्रोल रूम से जुड़कर प्रश्नों के उत्तर देता है।
ये है सिस्टम की कमियां...
- वीक्षकों की जांच नहीं होती है, क्या असल में वीक्षक स्कूल का स्टाफ है या बाहरी है।
- वीक्षक इतने अप्रशिक्षित होते है कि उन्हें नकल की रोकथाम के संबंध में ज्ञान नहीं होता है।
- अधिकांश अभ्यर्थियों का कहना है कि उनकी जांच नहीं की गई है।
- दूरदराज और गांवों में परीक्षा केंद्र स्थापित किए जाते है। इनमें भी अधिकांश निजी स्कूलों में परीक्षा केंद्र बनाए जाते है।
ये हैं उपाय...
- ऐसी परीक्षाओं में सरकारी शिक्षक और कर्मचारी लगाए जाए।
- वीक्षक भी सरकारी कर्मचारी हो।
- परीक्षाएं संभागीय स्तर पर आयोजित हो।
-जांच के लिए विशेष उपकरण हो और विशेष प्रशिक्षित दस्ता हो।
नोट..
- नकल से संबंधित जानकारियां, उन अभ्यर्थियों ने दी है, जिन्होंने पुलिस प्रशासन को परीक्षा के 20 घंटे पहले ही आगाह किया था कि ऐसे होगी ब्लू टूथ से नकल। साथ ही गिरोह से जुड़े लोगों के नाम भी उपलब्ध कराए थे।
एक ही सेंटर से क्यों पास होते हैं दर्जनों अभ्यर्थी?
आरपीएससी व अन्य परीक्षाओं में सामने आया कि झुंझुनूं, सीकर, धौलपुर व जयपुर आदि जिलों के इक्के-दुक्के सेंटरों से सभी अभ्यर्थी पास हो जाते हैं। जांच एजेंसियों का कहना है कि ब्लू टूथ व अन्य तरीकों से नकल कराने वाले गिरोह द्वारा पूरे सेंटर को ही खरीद लिए जाने से यह धांधली होती है। आरपीएससी सचिव का कहना है कि पिछली परीक्षा में भी दो केस ऐसे आए थे, जिनमें एक-एक सेंटर से ज्यादा अभ्यर्थी पास हुए थे।
इन केंद्रों के अभ्यर्थियों के परिणाम रोक कर जांच की गई। इस बार भी परिणाम के समय यदि किसी सेंटर से 80 फीसदी से ज्यादा परीक्षार्थियों के पास होने की बात सामने आई तो जांच की जाएगी।
सभी परीक्षाओं के बाद कोई निर्णय :
ब्लू टूथ ईयरफोन से नकल कराने वाले गिरोह द्वारा पेपर बाहर लाने या अन्य तरीकों से नकल के गुरुवार शाम तक जयपुर, सिरोही व बाड़मेर जिलों में पांच मामले सामने आए। गुरुवार के आंकड़े अभी नहीं मिले हैं। फिलहाल पेपर आउट नहीं मान रहे।
जिन जिलों में पुलिस या एसओजी द्वारा पकड़े गए मामलों में अगर यह सिद्ध होता है कि पेपर आउट हुआ था तो सभी परीक्षाओं के बाद आयोग स्तर पर कोई निर्णय किया जाएगा। हमने भी इस बार नकल रोकने व पेपर के बाहर जाने पर रोकथाम के लिए हर चार कमरों पर एक विजिटिंग परीक्षक लगाया है। आयोग के 2 अधिकारियों के नंबर सार्वजनिक किए हैं, जिन पर शिकायत आते ही संबंधित सेंटर समन्वयक से तत्काल कार्रवाई कराई जा सके।
केके पाठक, सचिव, आरपीएससी
फैक्ट फाइल
दो पेपर के साथ परीक्षा देने वाले : करीब 1.6 लाख
एक पेपर वाले अभ्यर्थी : करीब 4.5 लाख
पहले पेपर के लिए परीक्षा केंद्र: करीब 2 हजार
दूसरे पेपर के लिए प्रदेशभर में परीक्षा केंद्र: करीब 1200
ऐसे आउट माना जाता है पेपर
यदि किसी परीक्षा के दौरान पेपर की हू-ब-हू कॉपी किसी भी माध्यम से सेंटर से बाहर आ जाए व लोग उसका उपयोग कर लें तो पेपर आउट माना जाता है। इसके अलावा सेंटर पर पेपर खोले जाने से पांच मिनट पहले या पांच मिनट बाद तक भी यदि पेपर बाहर आ जाए तो पेपर आउट माना जाता है।
सील खोले जाने के पांच की जगह 15 मिनट तक भी बाहर आना आउट की श्रेणी में आ सकता है। लेकिन ज्यादा शातिर सेंटर संचालक रात को ही सील खोल पेपर आउट कर देते हैं और फिर सील लगाकर सुबह पेपर के समय कुछ कहानी गढ़ कर मामले को बाजार में किसी गिरोह द्वारा आउट करना बता देते हैं।
एसडी कारीगर,
पूर्व सहायक रजिस्ट्रार, राजस्थान यूनिवर्सिटी
पेपर, परीक्षार्थी, वीक्षक तीनों डमी, फिर होती है असली नकल
ब्लू टूथ से नकल के मामले में भास्कर टीम द्वारा की गई पड़ताल में सामने आया है कि एक गिरोह प्रत्येक छात्र से करीब पांच लाख रु. तक लेकर नकल करा रहा है। नकल कराने के तरीका अजीबो-गरीब हैं। गिरोह के सदस्य प्रश्न-पत्र, परीक्षार्थी और वीक्षक तक को डमी के रूप में इस्तेमाल करके अलग-अलग परीक्षा केंद्रों पर बैठे अभ्यर्थियों को सामूहिक नकल कराते हैं।
विभिन्न परीक्षाओं में पकड़ में आए ऐसे सात गिरोहों की पुष्टि पुलिस भी कर चुकी है। ये गिरोह प्रत्येक परीक्षा में 100 से 150 छात्रों से जुड़कर पांच करोड़ रु. से अधिक की डील करते हैं।
यूं होती है नकल
1. चूंकि ऑनलाइन आवेदन में सर्टिफिकेट संलग्न नहीं होता, इसलिए गिरोह के कुछ सदस्य बतौर डमी अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल होते हैं। इनका काम केवल गिरोह से जुड़े कैंडिटेड की मदद करना होता है। इसी तरह प्राइवेट स्कूलों द्वारा बिना जांच पड़ताल रखे जाने वाले वीक्षक के रूप में भी गिरोह के सहयोगी क्लास रूम तक आसानी से पहुंच जाते हैं। डमी अभ्यर्थी अपने साथ पुराना प्रश्नपत्र भी लाते हैं और नया पेपर मिलते ही अपने टेबल पर पुराना प्रश्नपत्र रखकर नया पेपर डमी वीक्षक को दे देते हैं।
चूंकि वीक्षक स्कूल में घूम सकता है, इसलिए वो इस पेपर को आसानी से स्कूल के दीवार के बाहर मुस्तैद गिरोह के सदस्य तक पहुंचा देता है। ठीक दस मिनट बाद ही वापस वो पेपर उसी तरह अभ्यर्थी तक पहुंच जाता है।
2. किसी स्कूल में विशेष सख्ती पर गिरोह विकल्प भी तैयार रखता है। ऐसे में डमी वीक्षक अपने पास मोबाइल (जो गिरोह द्वारा उपलब्ध कराया जाता है) से प्रश्न पत्र की फोटो लेकर गिरोह के सदस्यों को एमएमएस भेज देते हंै। जयपुर और जोधपुर सहित प्रदेशभर में इस तरह से नकल का तरीका अपनाया जाता है।
3. नकल का खास जरिया है एक माइक्रो ब्लू टूथ (साइज में बहुत छोटा होता है), जो शर्ट की कॉलर, बांह, कान के आभूषण, मफलर, घड़ी में लग जाता है। इसका संबंध कान के अंदर लगे एक इयर फोन से होता है। ये पेन की नोक जितना छोटा है और कान में लगने के बाद आसानी से दिखाई नहीं पड़ता है।
इस फोन और ब्लू टूथ की कीमत 15000 से 30000 के बीच है। एक किमी तक की दूरी पर रखे मोबाइल से यह ब्लू टूथ कनेक्ट रहता है। अगर परीक्षा कक्ष के बाहर मोबाइल रखा है तो कक्षा के अंदर बैठकर इस ब्लू टूथ के माध्यम से बात हो सकती है। इस तरह से कक्षा में बैठा परीक्षार्थी गिरोह के सदस्यों या गिरोह के कंट्रोल रूम से जुड़कर प्रश्नों के उत्तर देता है।
ये है सिस्टम की कमियां...
- वीक्षकों की जांच नहीं होती है, क्या असल में वीक्षक स्कूल का स्टाफ है या बाहरी है।
- वीक्षक इतने अप्रशिक्षित होते है कि उन्हें नकल की रोकथाम के संबंध में ज्ञान नहीं होता है।
- अधिकांश अभ्यर्थियों का कहना है कि उनकी जांच नहीं की गई है।
- दूरदराज और गांवों में परीक्षा केंद्र स्थापित किए जाते है। इनमें भी अधिकांश निजी स्कूलों में परीक्षा केंद्र बनाए जाते है।
ये हैं उपाय...
- ऐसी परीक्षाओं में सरकारी शिक्षक और कर्मचारी लगाए जाए।
- वीक्षक भी सरकारी कर्मचारी हो।
- परीक्षाएं संभागीय स्तर पर आयोजित हो।
-जांच के लिए विशेष उपकरण हो और विशेष प्रशिक्षित दस्ता हो।
नोट..
- नकल से संबंधित जानकारियां, उन अभ्यर्थियों ने दी है, जिन्होंने पुलिस प्रशासन को परीक्षा के 20 घंटे पहले ही आगाह किया था कि ऐसे होगी ब्लू टूथ से नकल। साथ ही गिरोह से जुड़े लोगों के नाम भी उपलब्ध कराए थे।
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