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अल्पसंख्यक कोटा बचाने सुप्रीम कोर्ट जाएगा केंद्र
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा अल्पसंख्यक कोटा खारिज किए जाने के बाद केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह सरकारी नौकरियों और केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में पिछड़ों के 27 प्रतिशत कोटे में अल्पसंख्यकों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण देने के अपने फैसले से पीछे नहीं हटेगी। हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का एलान करते हुए सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि अगर वहां भी बात नहीं बनी तो वह दूसरे उपायों पर गौर करेगी। कानून एवं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने मंगलवार को पत्रकारों को बताया, आंध्र हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की जाएगी। अगले हफ्ते अटार्नी जनरल के दिल्ली आने के बाद उनसे विचार-विमर्श के बाद सरकार अगला कदम उठाएगी। सुप्रीम कोर्ट में अभी अवकाश चल रहा है। एक सवाल के जवाब में खुर्शीद ने कहा कि धर्म के आधार पर किसी भी समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सरकार ने भी अल्पसंख्यक आरक्षण में उनके पिछड़ेपन को ही आधार बनाया है। अल्पसंख्यक कोई धर्म नहीं है। अलबत्ता, यह भाषाई और धार्मिक दोनों स्थितियों को दर्शाता है। खुर्शीद ने कहा कि इससे पहले भी आंध्र हाई कोर्ट राज्य सरकार की ओर से दिए गए अल्पसंख्यक आरक्षण को तीन बार खारिज कर चुका है।http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=8&edition=2012-05-30
अल्पसंख्यक आरक्षण खारिज
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को तगड़ा झटका देते हुए मजहब के आधार पर आरक्षण देने से इन्कार कर दिया है। यूपी चुनावों के दौरान केंद्र ने ओबीसी के 27 फीसद कोटे से साढ़े चार फीसद आरक्षण देने की घोषणा की थी जो सभी अल्पसंख्यक वर्गो के लिए था। इसे मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने का प्रयास माना गया था। ऐन वक्त पर की गई घोषणा पर आयोग ने विस चुनावों तक इसके अमल पर रोक लगा दी थी। सरकार ने नतीजे घोषित होने के साथ ही इसे लागू कर दिया। मुख्य न्यायाधीश मदन बी. लॉकर और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की खंडपीठ ने कहा कि सरकार इसे लागू करने के ठोस आधार नहीं दे पाई है। आरक्षण के अमल में आने के बाद आइआइटी में करीब 400 छात्रों का चयन हो गया। अब केंद्र द्वारा दिए गए इस आरक्षण का विरोध होना शुरू हो गया है। पिछड़ी जाति कल्याण संगठन के अध्यक्ष आरके कृष्णन्नैया ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र के फैसले को चुनौती दी है। संगठन के वकील केआर रेड्डी ने कहा कि कोर्ट के इस फैसले से आइआइटी के दाखिलों पर असर पड़ सकता
आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी सामान्य वर्ग में शामिल नहीं++पदोन्नति में आरक्षण: किस युग में जी रही है राजस्थान सरकार?++तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा स्वतंत्र एजेंसी कराएगी++अब अनुबंध खत्म होते ही खाली करना पड़ेगा किराए का मकान+
जयपुर.हाईकोर्ट ने कांस्टेबल भर्ती 2010 में आयु सीमा में छूट प्राप्त अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग से अधिक अंक लाने पर भी सामान्य श्रेणी में शामिल नहीं करने का निर्देश दिया। न्यायाधीश एम.एन.भंडारी ने यह आदेश मदनलाल व अन्य की याचिका पर दिया।
अदालत ने सरकार के 11 मई, 2011 के परिपत्र को गैरकानूनी करार देते हुए कहा कि इस तारीख के बाद की भर्तियों में आरक्षित वर्ग के आयु व शुल्क में छूट प्राप्त अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी से अधिक अंक लाने पर उस स्थिति में सामान्य वर्ग में शामिल किया जा सकता है, जब आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी ने अन्य वरीयता संबंधी छूट नहीं ली हो।
अधिवक्ता विज्ञान शाह ने बताया कि सरकार ने 10 अक्टूबर,10 को कांस्टेबल भर्ती की विज्ञप्ति
आरक्षण के लिए ब्रांाण समाज का महासम्मेलन 29 को
हिसार, जागरण संवाददाता : आरक्षण लेने के लिए ब्रांाण समाज ने भी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। आरक्षण के लिए समाज के लोगों का 29 जनवरी को भिवानी में आयोजित महासम्मेलन के लिए जोरशोर से तैयारी शुरू कर दी गई है। शनिवार को जहाज पुल स्थित जिला ब्रांाण सभा के कार्यालय में प्रधान पृथ्वी सिंह घिराइया की अध्यक्षता में बैठक में निर्णय लिया गया कि आरक्षण के लिए 29 जनवरी को भिवानी में प्रस्तावित महासम्मेलन में समाज के लोग बढ़-चढ़कर भाग लें। पृथ्वी घिराइया ने कहा कि प्रदेश में ब्रांाणों की स्थिति काफी खराब है। प्रदेश में रहने वाले काफी कम ब्रांाण ही सरकारी नौकरी या अन्य सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं। आरक्षण का लाभ मिलने से ही इस वर्ग का उत्थान संभव है।
पदोन्नति में आरक्षण का लाभ एक बार ही मिलेगा
रायपुर.मंत्रालय में विभिन्न वर्गो के लिए पदोन्नतियों के लिए मचे घमासान के बीच महाधिवक्ता दफ्तर ने साफ कर दिया है कि आरक्षण का लाभ केवल एक बार भर्ती के समय दिया जा सकता है। पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए शासन बाध्य नहीं है।
इस बारे में सामान्य प्रशासन विभाग ने 12 मई को महाधिवक्ता को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा था। जीएडी को महाधिवक्ता कार्यालय से 9 जून को जवाब मिल गया। जीएडी की बैठक में भी इस पर चर्चा की गई।
सूत्रों के अनुसार जीएडी ने सुझाव दिया है कि पदोन्नतियों के पूर्व में दी गई पदोन्नतियों व वर्तमान में प्रस्तावित पदोन्नतियों की समीक्षा करने एक कमेटी गठित कर ली जाए। बताया गया कि महाधिवक्ता दफ्तर ने परामर्श दिया है कि आरक्षण का लाभ बार-बार किसी कर्मचारी-अधिकारी को नहीं दिया जा सकता।
पदोन्नति के समय आरक्षित वर्ग के क्रीमीलेयर वाले अभ्यर्थियों को अलग करना अनिवार्य है। इस बारे में हाईकोर्ट के विभिन्न निर्णयों का उल्लेख भी परामर्श में किया गया है। इरीगेशन विभाग के आरसी द्विवेदी विरुद्ध शासन के प्रकरण का उल्लेख भी किया गया है। जीएडी से कहा गया है कि रोस्टर का गलत आशय लगाकर पदोन्नति देने से बचा जाए।
जीएडी के सूत्रों के अनुसार पिछले चार सालों में मंत्रालय में उप सचिव के पदों पर 100 प्रतिशत से अधिक पदों पर आरक्षित वर्ग के अवर सचिवों को पदोन्नति दे दी गईं। नियम है कि 39 प्रतिशत पदों पर आरक्षण का लाभ दिया जाना था।
इसी तरह अन्य संवर्गो में 70 प्रतिशत पदों पर नियम विरुद्ध पदोन्नति देने की शिकायत शासन से वंचितों ने की हैं।
इन शिकायतों के निराकरण के लिए मुख्य सचिव पी. जॉय उम्मेन ने विधि विभाग से अभिमत लेने के निर्देश दिए थे। विधि विभाग ने 2008 में जारी नियमों का पालन पदोन्नतियों में करने अभिमत दिया था। इन सबके बावजूद विधि वेत्ताओं का मानना है कि उनका काम संबंधित पक्षों को आइना दिखना है। उनका परामर्श मानने कोई बाध्य नहीं है।
खास बातें
> जिस केटेगरी के पद रिक्त हैं उसी पर दी जा सकती है पदोन्नति
> गलत पदोन्नतियों को रिवर्ट करना पड़ सकता है
> नियम विरूद्ध पदोन्नति हुई तो शासन के खिलाफ कई याचिकाएं दायर होने की आशंका
> हक मारे से मंत्रालय में अधिकारियों-कर्मचारियों में खाई बढ़ रही
> वर्ग विशेष को बढ़ावा देने का माहौल बन रहा
इस बारे में सामान्य प्रशासन विभाग ने 12 मई को महाधिवक्ता को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा था। जीएडी को महाधिवक्ता कार्यालय से 9 जून को जवाब मिल गया। जीएडी की बैठक में भी इस पर चर्चा की गई।
सूत्रों के अनुसार जीएडी ने सुझाव दिया है कि पदोन्नतियों के पूर्व में दी गई पदोन्नतियों व वर्तमान में प्रस्तावित पदोन्नतियों की समीक्षा करने एक कमेटी गठित कर ली जाए। बताया गया कि महाधिवक्ता दफ्तर ने परामर्श दिया है कि आरक्षण का लाभ बार-बार किसी कर्मचारी-अधिकारी को नहीं दिया जा सकता।
पदोन्नति के समय आरक्षित वर्ग के क्रीमीलेयर वाले अभ्यर्थियों को अलग करना अनिवार्य है। इस बारे में हाईकोर्ट के विभिन्न निर्णयों का उल्लेख भी परामर्श में किया गया है। इरीगेशन विभाग के आरसी द्विवेदी विरुद्ध शासन के प्रकरण का उल्लेख भी किया गया है। जीएडी से कहा गया है कि रोस्टर का गलत आशय लगाकर पदोन्नति देने से बचा जाए।
जीएडी के सूत्रों के अनुसार पिछले चार सालों में मंत्रालय में उप सचिव के पदों पर 100 प्रतिशत से अधिक पदों पर आरक्षित वर्ग के अवर सचिवों को पदोन्नति दे दी गईं। नियम है कि 39 प्रतिशत पदों पर आरक्षण का लाभ दिया जाना था।
इसी तरह अन्य संवर्गो में 70 प्रतिशत पदों पर नियम विरुद्ध पदोन्नति देने की शिकायत शासन से वंचितों ने की हैं।
इन शिकायतों के निराकरण के लिए मुख्य सचिव पी. जॉय उम्मेन ने विधि विभाग से अभिमत लेने के निर्देश दिए थे। विधि विभाग ने 2008 में जारी नियमों का पालन पदोन्नतियों में करने अभिमत दिया था। इन सबके बावजूद विधि वेत्ताओं का मानना है कि उनका काम संबंधित पक्षों को आइना दिखना है। उनका परामर्श मानने कोई बाध्य नहीं है।
खास बातें
> जिस केटेगरी के पद रिक्त हैं उसी पर दी जा सकती है पदोन्नति
> गलत पदोन्नतियों को रिवर्ट करना पड़ सकता है
> नियम विरूद्ध पदोन्नति हुई तो शासन के खिलाफ कई याचिकाएं दायर होने की आशंका
> हक मारे से मंत्रालय में अधिकारियों-कर्मचारियों में खाई बढ़ रही
> वर्ग विशेष को बढ़ावा देने का माहौल बन रहा
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